भाषा भारती (कक्षा 8वीं)
पाठ - 7
भेड़ाघाट
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-: अभ्यास :-
बोध प्रश्न
प्रश्न 1. निम्नलिखित शब्दों के अर्थ शब्दकोश से खोजकर लिखिए-
उत्तर-
बंदिनी = महिला कैदी;
निष्काम = बिना स्वार्थ के, बिना किसी कामना के;
कृष्णत्व = कालापन, श्याम रंग;
घर्षण = घिसावट, रगड़, घिसना;
नगण्य = तुच्छ, किसी गणना में न आने योग्य;
नुस्खा = वैद्य या हकीम द्वारा रोग दूर करने के लिए लिखी गई औषधि का पर्चा;
कूता = संख्या जानना, तौल आदि का अन्दाजा लगाना;
तृण = तिनका, कोमल घास।
प्रश्न 2. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर संक्षेप में लिखिए-
(क) भेड़ाघाट जबलपुर से कितने मील दूर है ?
उत्तर- भेड़ाघाट जबलपुर से तेरह मील दूर है।
(ख) गौरीशंकर मन्दिर किसने बनवाया था?
उत्तर- गौरीशंकर मन्दिर त्रिपुरी राजघराने के महाराज करण देव की महारानी अल्हणा देवी ने संवत् 1155-56 विक्रमी में बनवाया। इस प्रकार इसका निर्माण साढ़े आठ सौ वर्ष पूर्व किया गया।
(ग) दूध धारा किसे कहते हैं?
उत्तर- 'दूध धारा' संगमरमरी चट्टानों पर से नर्मदा का बहता जल है। वह जब घर्षण के साथ धुआँधार झरने से पानी गिरता है, तो वह दूध जैसा दीख पड़ता है। इसलिए इसे दूधधारा कहते हैं।
(घ) भेड़ाघाट घूमने कौन गया था?
उत्तर- भेड़ाघाट घूमने के लिए लेखक स्वयं गया हुआ था।
(ङ) भेड़ाघाट पर नर्मदा के दोनों ओर की चट्टानें किस पत्थर की बनी हुई हैं?
उत्तर- भेड़ाघाट पर नर्मदा के दोनों ओर की चट्टानें संगमरमर के पत्थर की बनी हुई हैं।
प्रश्न 3. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर विस्तार से लिखिए-
(क) नर्मदा नदी के प्राकृतिक सौन्दर्य का वर्णन अपने शब्दों में कीजिए।
उत्तर- नर्मदा नदी अमरकण्टक से निकली है। भेड़ाघाट में नर्मदा के दोनों किनारे संगमरमर के हैं। वहाँ के सौन्दर्य को समझ पाना थोड़ा कठिन है। यहाँ की सुन्दर प्रकृति के जितने भी रूप हैं, वे आपस में इस तरह उलझे से हैं; जैसे किसी वैद्य या डॉक्टर के नुस्खे। नुस्खे में कई तरह की औषधियों का मिश्रण होता है। उसी तरह भेड़ाघाट की सुन्दरता भी उलझकर हमें अपनी ओर आकर्षित करती है। नर्मदा नदी के प्रति लेखक की ममता प्राकृतिक रूप से स्वाभाविक है क्योंकि वह स्वयं इसी के किनारे के सौन्दर्य के बीच पला था, पढ़ा था और बड़ा हुआ था। यहाँ का वायुमण्डल खुला है। लोग यहाँ स्नान करने के लिए प्रतिदिन बड़ी संख्या में आते हैं। नर्मदा के किनारे की चट्टानें अपने ऊपर कोमल घास के तिनकों को धारण किये हुए हैं। वे जाड़ा, गर्मी और बरसात के मौसमों को बराबर सहन करती हैं। उनकी उज्ज्वलता श्वेतता में चन्द्रमा की चाँदनी को भी मात देती है। बहती हुई नर्मदा अपने किनारे की संगमरमरी चाँदी के कारागार की बंदिनी है। उसमें मछलियाँ और मगरमच्छ बड़ी संख्या में मिलते हैं। नर्मदा के पवित्र भेड़ाघाट के पास ही प्राकृतिक झरना है जिसे दूध-धारा कहते हैं। यहाँ पर प्रकृति अपने सौन्दर्य के क्षण-क्षण पर बदलती-सी लगती है। इसके किनारे मन्दिर और धर्मशालाएँ हैं। भेड़ाघाट की छोटी-सी पहाड़ी पर गौरीशंकर मन्दिर है। रात्रि के सन्नाटे में दूध-धारा का घर-घर शब्द गौरी शंकर मन्दिर में सुनाई पड़ता है। यहाँ सर्वत्र ही प्रकृति की सुन्दरता का साम्राज्य है।
(ख) जबलपुर में भेड़ाघाट के अतिरिक्त कौन-कौन से घाट हैं ? वे भेड़ाघाट की तरह आकर्षक क्यों नहीं लगते?
उत्तर- लेखक ने भेड़ाघाट देखा। वहाँ की सुन्दरता का प्रभाव लेखक के मन पर बहुत ही अधिक था। उसने सबसे पहले ग्वारीघाट तथा तिलवाड़ा देख लिया था। इन स्थानों की प्रकृति भी कम सौन्दर्यमयी नहीं थी। यहाँ की चट्टानें भी सतपुड़ा के शिखरों की गौरव थीं। इन प्राकृतिक उपादानों में उनकी विशालता ही शोभा थी जिसके महत्व को नहीं आँका जा सकता। दूध-धारा और धुआँधार भी अपने प्राकृतिक सौन्दर्य की आभा को बिखेर रही थीं। इन्हीं शिखरों के मध्य गौरीशंकर और चौंसठ योगिनी का मन्दिर है। नर्मदा के किनारों वाले बीहड़ जंगलों के मध्य इन मन्दिरों का निर्माण करना भी अपने आप में एक ऐतिहासिक सच्चाई है। लेखक को इन सभी स्थलों की सुन्दरता ने प्रभावित तो किया परन्तु उसके ऊपर भेड़ाघाट की सुन्दरता का मुग्धकारी प्रभाव चमत्कारिक है।
(ग) लेखक द्वारा की गई भेड़ाघाट यात्रा का वर्णन कम-से-कम 100 (सौ) शब्दों में कीजिए।
उत्तर- लेखक को सन् 1914 ई. में भेड़ाघाट देखने का अवसर मिला। भेड़ाघाट जबलपुर से तेरह मील दूर है। वह आधा घण्टे में मीरगंज स्टेशन पर पहुँच गया। उस समय रेलगाड़ी की यह गति बहुत तेज समझी जाती थी। दो-तीन अंग्रेज अपने खानसामे के साथ भेड़ाघाट जाने के लिए मीरगंज स्टेशन पर उतरे थे। नर्मदा नदी के भेड़ाघाट तक वहाँ सड़क कच्ची थी। नर्मदा नदी अमरकंटक से निकली है। नर्मदा का प्रवाह आठ सौ मील तक बहता है परन्तु भेड़ाघाट इसके उद्गम अमरकण्टक से एक सौ चौवन मील की दूरी पर है। मुर्की और लोकेश्वर के बीचोंबीच भेड़ाघाट स्थित है। यह वह स्थल है जहाँ किसी युग में भृगु ऋषि ने तपस्या की थी। यहाँ की संगमरमरी चट्टानें निर्मल और सुन्दर हैं। वहाँ की गम्भीरता प्रदर्शित करती है कि मानो वह ऋषि आज भी वहाँ अपनी तपस्या में लीन है। इन चट्टानों के ऊपर कोमल घास उगी हुई। चन्द्रमा की चाँदनी में चाँदी की तरह चमक उठती है और सूरज की तपिश में तप उठती हैं। बरसात में घना अंधकार सब ओर छा जाता है। लेखक को यहाँ के सौन्दर्य ने बहुत अधिक प्रभावित किया है। लेखक ने गौरीशंकर और चौंसठ योगिनियों के मन्दिर को भी देखा। इसके समीप ही दूध-धारा को देख लेखक चमत्कृत हो उठा। इस सब की घर-घर और मर-मर की आवाज अभी भी लेखक को अपने कानों में गूँजती प्रतीत होती है।
प्रश्न 4. सही विकल्प चुनकर लिखिए-
(1) सतपुड़ा का जंगल कहाँ स्थित है?
(क) उत्तर प्रदेश,
(ख) आन्ध्र प्रदेश,
(ग) मध्य प्रदेश,
(घ) बिहार।
(2) धुआँधार प्रपात किस नदी के जल के गिरने से बनता है?
(क) नर्मदा,
(ख) गंगा,
(ग) यमुना,
(घ) ताप्ती ।
(3) भेड़ाघाट की पहाड़ी पर कौन-सा मन्दिर बना है?
(क) गणेश,
(ख) महादेव,
(ग) गौरीशंकर,
(घ) सीता-राम।
(4) 'पल-पल पलटति भेष, छलकि छन-छन छवि धारति' ये पंक्तियाँ किस कवि की हैं?
(क) माखन लाल चतुर्वेदी,
(ख) श्रीधर पाठक,
(ग) शिवमंगाल सिंह 'सुमन'
(घ) सूर्यकान्त त्रिपाठी 'निराला'।
उत्तर-
(1) (ग) मध्य प्रदेश,
(2) (क) नर्मदा,
(3) (ग) गौरीशंकर,
(4) (ख) श्रीधर पाठक।
प्रश्न 5. निम्नलिखित पंक्तियों का आशय स्पष्ट कीजिए-
(1) "बैल को अपने खूँटे पर ही अच्छा लगता है।"
(2) नर्मदा चाहे कितनी मर-मर करे, वह मरती नहीं है।
(3) जो जनसेवा के लिए नीचे गिरना स्वीकृत करते हैं, उन्हें शोभाधाम के ऐसे ही हाथ सँभाल लिया करते हैं।
उत्तर- (1) एक पुरानी कहावत है कि बैल जो अपने निश्चित स्थान पर बँधता रहा हो, उसे वही स्थान अच्छा (प्रिय) लगेगा।
(2) नर्मदा नदी अपने जल के प्रवाह से मर-मर की ध्वनि उत्पन्न करती हुई बहती रहती है, किन्तु इसके दोनों किनारों की ऊँची चट्टानों की श्वेतता कभी भी मर नहीं सकती।
(3) नर्मदा नदी जब भेड़ाघाट पर अत्यधिक ऊँचाई से नीचे गिरती है तो उसके दोनों किनारों पर खड़ी संगमरमरी चट्टानें उसे मानो अपनी भुजाओं में स्थान देती प्रतीत होती हैं। इसी प्रकार जब भी कोई व्यक्ति अथवा व्यक्तित्व जनसेवार्थ झुककर अथवा नत होकर कोई कार्य सम्पन्न करने हेतु चल पड़ता है, तो उसे समाज रूपी सुन्दर एवं मजबूत हाथ अपना सहारा एवं संबल प्रदान करते हैं।
भाषा-अध्ययन
प्रश्न 1. निम्नलिखित शब्दों का शुद्ध उच्चारण कीजिए और लिखिए-
डॉक्टर, ड्रॉप, कॉलेज, बॉल, बॉस, कॉल, लॉकर, ऑफिस।
उत्तर- विद्यार्थी उपर्युक्त शब्दों को ठीक-ठीक पढ़कर उनका शुद्ध उच्चारण करने का अभ्यास करें और लिखें।
प्रश्न 2. निम्नलिखित शब्दों को वर्णमाला के क्रम में लिखिए-
संन्यासी, नवरत्न, भेड़ाघाट, खूँटा, बरसात, उज्ज्वलता, नर्मदा, मुलायम, रेती, किनारा, दर्शन, ग्वारीघाट।
उत्तर- उज्ज्वलता, किनारा, खूँटा, ग्वारी घाट, दर्शन, नर्मदा, नवरत्न, बरसात, भेड़ाघाट, मुलायम, रेती, संन्यासी ।
प्रश्न 3. निम्नलिखित उदाहरण के अनुरूप दिए गए शब्दों का प्रयोग एक-एक वाक्य में कीजिए-
उदाहरण-
कालिदास, विक्रमादित्य, नवरत्न।
वाक्य- कालिदास विक्रमादित्य की सभा के नवरत्नों में से एक थे।
1. नगण्य, मूल्य, ईमानदारी।
उत्तर- ईमानदारी से देखा जाय तो इन संगमरमरी चट्टानों की अपेक्षा चाँदी का मूल्य नगण्य है।
2. नर्मदा, जबलपुर, भेड़ाघाट, प्रकृति चित्रण, मनोरम।
उत्तर- जबलपुर के समीप नर्मदा नदी के भेड़ाघाट का प्रकृति चित्रण लेखक ने बहुत ही मनोरम शैली में किया है।
3. रात, पक्षी, घोंसला।
उत्तर- रात को पक्षी अपने घोंसलों में छिपकर धुआँधार के झरने की 'घर-घर' की आवाज सुनते हैं।
प्रश्न 4. शुद्ध शब्द छाँटकर सामने के खाने में लिखिए-
(1) परवत, पर्वत, पर्बत
(2) नर्मदा, नरमदा, नरबदा
(3) श्रेणी, शैणी, शरैणी
(4) पूरवी, पूर्वी, पूर्वि
(5) प्रपात, परपात, पर्यात
(6) पशचिम, पश्चिम, पश्चिम
उत्तर-
(1) पर्वत,
(2) नर्मदा,
(3) श्रेणी,
(4) पूर्वी,
(5) प्रपात,
(6) पश्चिम।
प्रश्न 5. निम्नलिखित शब्दों के क्रम से कम से कम दो-दो अर्थ लिखकर, उन्हें अपने वाक्यों में प्रयोग कीजिए-
आम, काल, गति, अर्थ, तात।
उत्तर-
शब्द | अर्थ | वाक्य |
---|---|---|
(क) आम | 1. एक फल का नाम | (1) आम फलों का राजा है। |
2. जन साधारण | (2) नेताजी ने आम सभा में भाषण दिया। | |
(ख) काल | 1. समय | (1) रामायण काल में लोग धर्म परायण थे। |
2. मृत्यु | (2) सुनामी आने पर लोग काल कवलित हो गए। | |
(ग) गति | 1. चाल | (1) रेलगाड़ी की गति तेज हो गई है। |
2. अवस्था | (2) उसकी गति बहुत खराब हो गई है। | |
(घ) अर्थ | 1. भाव, आशय | (1) उसके कथन का अर्थ समझ में नही आता। |
2. धन | (2) भारत की अर्थ व्यवस्था बहुत अच्छी है। | |
(ङ) तात | 1. पुत्र | (1) हे तात! मेरे लिए जल लाओ। |
2. पिता | (2) हे तात! तुम कहाँ हो? | |
प्रश्न 6. निम्नलिखित वाक्यांशों के लिए उनके सामने लिखे शब्दों में से उचित शब्द छाँटकर लिखिए -
वाक्यांश शब्द
(अ) उपकार मानने वाला (1) अनुकरणीय
(आ) जो अनुकरण करने योग्य हो (2) चिकित्सक
(इ) कम खाने वाला (3) कृतज्ञ
(ई) रोगी का इलाज करने वाला (4) मिताहारी
(उ) जो सब कुछ जानता हो (5) लोकप्रिय
(ऊ) हाथ से लिखा हुआ (6) हस्तलिखित
(ए) जो लोगों को प्रिय हो (7) सर्वज्ञ
उत्तर-
(अ) → (3),
(आ)→(1),
(इ) → (4),
(ई) → (2),
(3)→ (7),
(ऊ) → (6),
(ए) → (5).
-: परीक्षापयोगी गद्यांशों की व्याख्या :-
(1) भेड़ाघाट में नर्मदा के दोनों किनारे संगमरमर के हैं, किन्तु मैं सौन्दर्य-बोध के कारण ही वहाँ जा रहा था, यह कहना अत्यन्त कठिन है। जिस तरह वैद्य या डॉक्टर के नुस्खे कई वस्तुओं का मिश्रण ही हैं, उसी तरह मेरे मन में भेड़ाघाट के दर्शन की लालसा में कई भावनाओं का मिश्रण था।
शब्दार्थ- सौन्दर्य-बोध के कारण = सुन्दरता को समझने के लिए; अत्यन्त = बहुत अधिक; नुस्खे = वैद्य या हकीम के द्वारा रोग दूर करने के लिए लिखी गई औषधि के पर्चे; मिश्रण = मिलावट; लालसा = इच्छा, कामना।
सन्दर्भ- प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी पाठ्य-पुस्तक 'भाषा-भारती' के पाठ 'भेड़ाघाट' से अवतरित है। इसके लेखक 'पं. माखनलाल चतुर्वेदी' हैं।
प्रसंग- भेड़ाघाट को देखने की अपनी इच्छा का वर्णन किया है।
व्याख्या- भेड़ाघाट जबलपुर से कुल तेरह मील की दूरी पर है। यह नर्मदा नदी का घाट है जहाँ इसके दोनों किनारे संगमरमर के हैं। मैं वहाँ भेड़ाघाट देखने के लिए जा रहा था। मेरा उद्देश्य भेड़ाघाट के क्षेत्र की सुन्दरता को समझने के लिए और उस सौन्दर्य के पर्यावरण की जानकारी करने का था। अकेले सौन्दर्य को देखने भर का ही उद्देश्य नहीं था। कुछ अन्य बातें भी थीं। ये सभी बातें वैद्य या डॉक्टर के उस नुस्खे के समान र्थी जिसमें कई औषधियों का मिश्रण लिखा हुआ होता है। मेरी विविध भावनाएँ और इच्छाएँ मेरे अन्दर सहभागी थीं; जिनके कारण मैं (लेखक) भेड़ाघाट देखने के लिए चल पड़ा। भेड़ाघाट देखने की प्रबल इच्छा, इसके प्रागैतिहासिक स्वरूप को ऐतिहासिक बना देने की है।
(2) वायुमण्डल खुला है-पुण्यस्थल है, स्नानार्थी आते-जाते रहते हैं, श्लोक का पाठ होता है। बड़े-बड़े स्टेशन हैं, बहुत रेलें आती हैं, यह सब ठीक है, किन्तु किनारे जो रुके हुए हैं। कहते हैं, बैल को अपने खूँटे पर ही अच्छा लगता है, सो मुझे तो बीहड़, नर्मदा, उसके प्रपात और उसका घर्षण ही प्यारा लगता है।
शब्दार्थ- पुण्यस्थल = पवित्र जगह; स्नानार्थी = स्नान (नहाने) की इच्छा वाले; खूँटा = लकड़ी का वह टुकड़ा जो जमीन में ठोककर गाड़ दिया जाता है जिससे पशु (बैल आदि) बाँधा जाता है; बीहड़ = सूने जंगल; प्रपात = झरने; घर्षण = जल के गिरने से उठने वाली आवाज; प्यारा = अच्छा ।
सन्दर्भ- पूर्व की तरह।
प्रसंग- भेड़ाघाट का वर्णन किया गया है।
व्याख्या- भेड़ाघाट के चारों ओर का वातावरण (पर्यावरण) बिल्कुल खुला हुआ है। यह स्थान बहुत ही पवित्र है। यहाँ के पवित्र जल में स्नान करने की इच्छा वाले लोग काफी संख्या में यहाँ आते हैं और स्नान करके लौट जाते हैं। वे स्नान करने के समय के श्लोक का उच्चारण सस्वर करते हैं। यहाँ रेलवे विभाग के स्टेशन भी हैं। इन स्टेशनों से अनेक रेलगाड़ियाँ गुजरती हैं। यह सब तो बहुत ही ठीक है किन्तु इस नर्मदा नदी के बहते हुए जल को रोककर इसके किनारे स्थिर (अचल) होकर खड़े हैं। पर एक कहावत यह है कि एक बैल जो अपने निश्चित स्थान पर बँधता रहा है, उसे वही स्थान अच्छा (प्रिय) लगेगा। यही कहावत मेरे विषय में भी उचित बैठती है। नर्मदा की घाटी, उसके बीहड़ भूमि, स्वयं नर्मदा नदी, उसके झरने तथा उन झरनों से गिरने वाले पानी के घर्षण से उत्पन्न आवाज (ध्वनि) बहुत ही प्रिय लगती है।
(3) कहते हैं, 800 मील बहने वाली नर्मदा अमर-कण्टक से एक सौ चौवन मील ही चल पायी थी कि भेड़ाघाट आ गया। मुर्की से नर्मदा चली और लोकेश्वर की ओर बही। यहीं, बीचोंबीच भेड़ाघाट है। कहते हैं, यहाँ किसी युग में भृगु ऋषि तपस्या करते थे। चट्टानों के निर्मल और सुन्दर स्वरूप को देखकर ऐसा लगता है, मानो, आज भी वे तपस्या कर रहे हैं।
शब्दार्थ- निर्मल = स्वच्छ, उज्ज्वल; बीचोंबीच = मध्य।
सन्दर्भ- पूर्व की तरह।
प्रसंग- भेड़ाघाट की स्थिति का वर्णन किया है।
व्याख्या- अमरकण्टक से निकलकर नदी का विस्तार आठ सौ मील का है। लेकिन अमरकण्टक से भेड़ाघाट की दूरी एक सौ चौवन मील है। मुर्की और लोकेश्वर के मध्य में ही भेड़ाघाट स्थित है। मुर्की से नर्मदा बहती है तो लोकेश्वर तक बहती जाती है। यह कहा जाता हैं कि यह वह स्थल है जहाँ ऋषि भृगु ने तपस्या की थी। यहाँ की चट्टानें बहुत ही स्वच्छ हैं, पवित्र हैं। उनका स्वरूप अत्यन्त सुन्दर है। वहाँ का शान्त और सुन्दर परिवेश है जिससे अभी भी यह लगता है कि मानो भृगु ऋषि वहाँ तपस्या कर रहे हैं।
(4) नदी के पानी में खड़ी विशाल चट्टानें छोटे तृणों के लिए सर्दी, गर्मी और बरसात को सह रही हैं। काटने से कट भले ही जाएँ किन्तु झुकना नहीं जानतीं। अपना क्रम नहीं रुकने देतीं, अपनी उज्ज्वलता मन्द नहीं होने देतीं। चाँद आता है तो चाँदी जैसी चमक उठती हैं। सूरज आता है तो उस जैसी तप उठती हैं। हाँ, जब बरसात आती है अथवा जब घना अन्धकार आता है, तब भी वे अपनी उज्ज्वलता, अपनी पवित्रता खोने को तैयार नहीं हैं। इन सबको तपस्या न कहा जाय, तो क्या कहा जाय ?
शब्दार्थ- तृणों = तिनके, या घास के कोमल अंकुर; उज्ज्वलता = पवित्रता, स्वच्छता; मन्द = धीमी, कम; घना = गहरा।
सन्दर्भ- पूर्व की तरह।
प्रसंग- लेखक ने नर्मदा के किनारों की शोभा का वर्णन किया है।
व्याख्या- नदी का जल बड़े आकार वाली चट्टानों को डुबाता हुआ बहता है। जल के नीचे डूबी हुई चट्टानों के ऊपर छोटी-छोटी घास उग रही है। जाड़ा, गर्मी और बरसात के मौसम को निरन्तर सहती रहती हैं। इन चट्टानों को यदि काटने का प्रयास किया जाय, तो वे कट तो अवश्य जायेंगी परन्तु झुकती नहीं हैं। ये चट्टानें लगातार ही आगे तक बढ़ती जाती हैं अर्थात् बहुत दूरी तक ये चट्टानें नदी के अथाह तल के नीचे और किनारों पर लगातार अपने मस्तक को उठाये हुए आगे तक बहते जल के साथ बढ़ती हुई जाती हैं। उनकी पवित्रता धीमी नहीं होती, मन्द नहीं पड़ती। चन्द्रमा की चाँदनी में चाँदी की तरह ही चमचमाती रहती हैं। सूर्य के उदय होते ही, उसके तेज से एकदम तपने लगती हैं, परन्तु जब वर्षा ऋतु का आगमन होता है, तब यहाँ घना अन्धकार छा जाता है. फिर भी इनकी धवलता लिए हुए चमक, निर्मलता, उनको पवित्रता समाप्त नहीं होती। यह वास्तव में तपस्या ही है। अन्य कुछ भी नहीं।
(5) नर्मदा मानो यहाँ चाँदी के कारागार की बन्दिनी है। यहाँ से मील भर ऊपर बहती हुई नर्मदा, धुआँधार प्रपात बनाती हुई नीचे गिरी थी, तब उसने, उसकी मछलियों और मगरमच्छों ने यह सोचा ही न होगा कि इसके उस मधुर और सुन्दर पतन के पश्चात् ही संगमरमर की दो विशाल भुजाएँ उसे गोद में लेकर खड़ी हो जायेंगी और जो दुलार उसने अपने जन्मदाता अमरकण्टक से न पाया होगा और जो सुन्दरता से भरा प्यार भूमि पर नीचे-नीचे सरकते उसे प्राप्त न हुआ होगा, वह स्नेह, वह दुलार उसे सतपुड़ा की संगमरमर की चट्टानें देने वाली हैं।
शब्दार्थ- कारागार = जेल, कारागृह; बन्दिनी = जेल में बन्द की हुई महिला, महिला कैदी; प्रपात = झरना; मधुर = आकर्षक, अच्छा, मीठा; पतन = गिरावट; दुलार = प्रेम, लाड़-प्यार; जन्मदाता = जन्म देने वाला।
सन्दर्भ- पूर्व की तरह।
प्रसंग- नर्मदा नदी के उद्गम का वर्णन किया गया है।
व्याख्या- इस स्थान पर (भेड़ाघाट पर) नर्मदा नदी चाँदी जैसी श्वेत संगमरमरी जेल के कारागार के अन्दर बन्द की गई किसी बन्दिनी की भाँति है। श्वेत चमकीली संगमरमर की चट्टानों का किनारा मानो जेलखाने की ऊँची-ऊँची दीवारें हैं। इस स्थान से मील भर की दूरी तक बहती हुई नर्मदा नदी अपने तेज प्रवाह से नीचे की ओर गिरती हुई एक झरने का निर्माण करती है। इस झरने का नाम धुआँधार है। यहाँ नर्मदा के प्रवाह का जल बहुत ऊँचाई से गिरता है और लगातार जल के गिरने से घना धुआँ छाया रहता है। इसलिए इसका नाम धुआँधार उचित ही रख दिया गया है।
इस झरने के पतन के स्थान पर बहुत-सी मछलियाँ और मगरमच्छ हैं। नर्मदा का झरना बहुत ही सुन्दर और आकर्षक है। नर्मदा अपने किनारे की संगमरमरी चट्टानों की दो भुजाओं की गोद में जाकर झरने के पतन के रूप में खड़ी हो जाएगी, ऐसा उसने कभी सोचा भी नहीं था। वहाँ उसे अपने जन्म देने वाले अमरकण्टक से भी उतना लाड़-प्यार नहीं मिला जितना उसे यहाँ संगमरमर की चट्टानी गोद में मिला। नर्मदा इस झरने के रूप में पठारी भूमि से उतरकर नीचे भूमि पर गिरती है तो उसे वह दुलार नहीं प्राप्त हुआ जो सतपुड़ा की पहाड़ी चट्टानों में प्राप्त हुआ।
(6) हिमालय की बर्फीली चोटियों पर नजर डालिए, वे छल रही हैं, गल रही हैं, एक सफेदी यहाँ भी है, जो गलती नहीं है, ढलती नहीं है। नर्मदा चाहे कितनी मर-मर करे किन्तु वह मरती नहीं है। शताब्दियों ने इसे अमर ही देखा है, इसे अमर ही देखेंगी।
शब्दार्थ- नज़र = निगाह, दृष्टि; छल रही हैं = धोखा दे रही हैं; गल रही हैं = पिघल रही हैं। ढलती नहीं = समाप्त नहीं होती; शताब्दियों ने = सैकड़ों वर्षों ने।
सन्दर्भ- पूर्व की तरह।
प्रसंग- लेखक हिमालय की चोटियों पर्वत चोटियों से तुलना कर रहा है। की और सतपुड़ा की
व्याख्या- हिमालय पर्वत की चोटियाँ भी हैं। उन पर हम यदि नजर डालें तो (उनको देखें तो) वे हमारी आँखों को धोखा देती हुई लगती हैं। वे गल (पिघल) रही हैं। इन चोटियों की सी धवलता श्वेतता (सफेदपन) सतपुड़ा की इन संगमरमरी चट्टानों की चोटियों में भी है। यह धवलता हिमालय की बर्फीली चट्टानों की भाँति गल जाने वाली नहीं है। वह कभी समाप्त भी नहीं हो रही है।
नर्मदा अपने जल के प्रवाह से मर-मर की ध्वनि उठाती हुई बहती रहती है, परन्तु इसके दोनों किनारों की ऊँची चट्टानों की श्वेतता कभी भी मर नहीं सकती। सैकड़ों वर्षों से वह धवलता कभी भी मिटी नहीं, लुप्त नहीं हुई। आगे भी वह इसी तरह धवल ही बनी रहेगी। उसकी चट्टानी स्वच्छता व श्वेतता अमर है।
~ पं. माखनलाल चतुर्वेदी
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