भाषा भारती (कक्षा 8वीं)
पाठ - 9
बिरसा मुण्डा
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-: अभ्यास :-
बोध प्रश्न
प्रश्न 1. निम्नलिखित शब्दों के अर्थ शब्दकोश से खोजकर लिखिए-
उत्तर-
जीवन-वृत्त = जीवनी या जीवन परिचय;
जागृति = चेतना;
उद्धारक = उद्धार करने वाला, तारने वाला;
चौपट होना = बरबाद हो जाना;
कारागार = कैदखाना, जेल;
पथ = मार्ग, रास्ता;
मुग्ध = मोहित हो जाना;
प्रारम्भिक = शुरू की;
बियावान = निर्जन;
धूमिल = धूल में लिपट जाना, धूल-धूसरित हो जाना;
पीड़ादायी = कष्ट देने वाली;
उपासना = पूजा;
तत्कालीन = उस समय की;
शोषण = काम करने पर मजदूरी न दिया जाना;
उपचार = इलाज;
दासता = गुलामी;
नाद = स्वर;
सामान्य = साधारण;
सदी = शताब्दी;
कथन = कहावत, कहना;
बर्बरता = निर्दयता, क्रूरता।
प्रश्न 2. दिए गये विकल्पों में से सही विकल्प चुनकर लिखिए-
(क) बिरसा मुण्डा का सम्बन्ध निम्नलिखित में से वर्तमान के किस राज्य से था?
(1) झारखण्ड,
(2) बिहार,
(3) छत्तीसगढ़।
(ख) मुण्डा समाज के आराध्य देव 'सिंग' का अर्थ है-
(1) सिंह,
(2) सींग,
(3) सूर्य।
उत्तर-
(क) (1) झारखण्ड,
(ख) (3) सूर्य।
प्रश्न 3. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर संक्षेप में लिखिए-
(क) बिरसा मुण्डा को लूथरन मिशन स्कूल क्यों छोड़ना पड़ा ?
उत्तर- बिरसा मुण्डा को लूथरन मिशन स्कूल इसलिए छोड़ना पड़ा क्योंकि वहाँ उन्हें दासता का अनुभव हो रहा था। उन्होंने ऐसे दृश्य देखे जिनमें मुण्डा लोगों का शोषण किया जा रहा था। इससे उन्हें बहुत कष्ट हुआ और बिरसा ने अंग्रेजों के कारनामों पर टीका-टिप्पणी करना शुरू कर दिया।
(ख) बिरसा रोगियों का उपचार कैसे करते थे?
उत्तर- बिरसा रोगियों का उपचार जड़ी-बूटियों से करते थे।
(ग) मुण्डा जनजाति के लोग बिरसा को क्यों मानते थे?
उत्तर- बिरसा ने गाँववासियों और आसपास के लोग जो उनके पास आये, उनका जड़ी-बूटियों से इलाज किया। उन्हें स्वस्थ रहने के उपाय बताए। इस तरह वे उपदेशक भी बन गये। उन्हें लोग अवतारी पुरुष मानने लगे और उनका आदर भाव बढ़ता गया।
(घ) अंग्रेजों ने बिरसा का दाह-संस्कार सार्वजनिक रूप से क्यों नहीं किया?
उत्तर- स्वतन्त्रता संग्राम के सेनानी के रूप में बिरसा को अंग्रेजों ने पकड़ लिया। वे स्वतन्त्रता की ज्योति लोगों में जगा चुके थे। बन्दी बनाये जाने से पूर्व बिरसा बीमार चल रहे थे। अदालत में पेश करने पर उनकी दशा बिगड़ गयी। उन्हें खून की उल्टियाँ होने लगीं। बिरसा जो मुण्डा समाज का उद्धारक था, सदा के लिए सो गया। इसलिए उपद्रव के भय से अंग्रेजों ने बिरसा का दाह-संस्कार सार्वजनिक रूप से नहीं किया।
(ङ) बिरसा मुण्डा ने किस उद्देश्य से अपना आन्दोलन प्रारम्भ किया?
उत्तर- बिरसा मुण्डा ने मुण्डाओं को अंग्रेजों के अत्याचारों से तथा शोषण से मुक्ति दिलाने और भारत को आजाद कराने के उद्देश्य से अपना आन्दोलन प्रारम्भ किया।
प्रश्न 4. खाली स्थान भरिए-
(क) .................... के कारण ओझा लोगों का काम चौपट हो रहा था।
(ख) मुण्डा लोगों के प्रमुख अस्त्र-शस्त्र .................. और ................ थे।
(ग) पुरस्कार के ................ में कुछ लोगों ने बिरसा को पकड़वा दिया।
उत्तर-
(क) बिरसा मुण्डा के कारण ओझा लोगों का काम चौपट हो रहा था।
(ख) मुण्डा लोगों के प्रमुख अस्त्र-शस्त्र भाले और तीर-कमान थे।
(ग) पुरस्कार के लालच में कुछ लोगों ने बिरसा को पकड़वा दिया।
प्रश्न 5. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर विस्तार से लिखिए-
(क) प्रस्तुत पाठ से हमें आज से सौ वर्ष पूर्व के आदिवासियों के जीवन की क्या जानकारी मिलती है?
उत्तर- आज से सौ वर्ष पूर्व के आदिवासियों ने भी भारत की आजादी के लिए अंग्रेजी शासन के विरुद्ध अपनी आवाज उठाई और इनमें आजादी की भावनाओं को स्वर देने का काम बिरसा मुण्डा ने किया। मुण्डा भारत की प्रमुख जनजाति है जो राँची और उसके आस-पास के क्षेत्रों में बडी संख्या में निवास करती है। मुण्डा जाति बहुत ही सरल जीवन बिताने वाली जाति है। वह अपने जीवनयापन के लिए पूर्णतः प्रकृति पर निर्भर करती है।
मुण्डा समाज 'सिंग' और 'बोंगा' की उपासना करते हैं। 'सिंग' का अर्थ सूर्य होता है तथा 'बोंगा' मुण्डा समाज की देवी है। अन्य जनजातियों की भाँति मुण्डा समाज में भी काफी जागृति आ गई है। विदेशी दासता की जंजीरों से मुक्त होने के लिए तत्कालीन उरांव, मुण्डा और खड़िया जनजातियों ने बिरसा मुण्डा के नेतृत्व में अंग्रेजों के विरुद्ध हथियार उठा लिए थे।
मुण्डा जाति के लोग निर्धन और अशिक्षित थे। उनकी शिक्षा के लिए कुछ मिशनरी विद्यालय थे। जहाँ उन्हें ईसाई धर्म में दीक्षित करने की कोशिश होती थी। वे ओझाओं के झाड़-फूंक में विश्वास करते थे। उन्हें अपनी जमीन से बेदखल कर दिया गया था। पंच-पंचायतें समाप्त कर दी गई थीं। इस तरह वे भूख और दमन के कारण असहाय थे।
(ख) बिरसा मुण्डा के आन्दोलन के क्या कारण थे?
उत्तर- बिरसा मुण्डा के आन्दोलन के निम्नलिखित कारण थे-
(1) मुण्डा जाति को उनकी जमीन से बेदखल कर दिया गया था।
(2) उनके पंच-पंचायत समाप्त कर दिये गये।
(3) उनकी जमीन पर जमींदार और दलाल थोप दिये गये।
(4) मुण्डा जाति के लोगों के जंगलों पर अंग्रेजी शासन ने अपने दलालों और लोगों को मालिक बना दिया। वे मालिक से नौकर हो गये।
(5) उन्हें बेगार में घसीटा जाता। उनका शोषण होता था।
(6) आर्थिक तंगी का मामला बिरसा मुण्डा के आन्दोलन का सबसे बड़ा कारण था। उनकी आर्थिक स्थिति बहुत ही दयनीय थी।
(ग) "भारतीय इतिहास का एक सत्य यह भी है कि भारत जब भी विदेशियों से पराजित हुआ, तो देशद्रोहियों के कारण," प्रस्तुत पाठ के सन्दर्भ में इस कथन की पुष्टि कीजिए।
उत्तर- बिरसा मुण्डा ने ब्रिटिश शासन के विरुद्ध तीव्र आन्दोलन शुरू कर दिया। उनका यह आन्दोलन अन्याय और शोषण के विरुद्ध था। यह आन्दोलन मानवता की रक्षा के लिए था। उन दिनों प्रथम स्वतन्त्रता संग्राम के महान सेनानियों में झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई, तात्या टोपे, नाना साहब, कुँवर सिंह आदि की वीरता की कहानियाँ लोगों के मुँह पर थीं।
जनमत अंग्रेज शासकों के विरुद्ध था। सामाजिक आन्दोलन ने राजनैतिक रूप धारण कर लिया था। बिरसा मुण्डा ने इस आन्दोलन को आगे बढ़ाया। मुण्डा और दूसरी जनजातियाँ भाले और तीर कमान लेकर चारकाड़ गाँव में एकत्र हो गये। बिरसा की क्रान्तिकारी गतिविधियों से डिप्टी कमिश्नर और जिला पुलिस अधीक्षक बहुत परेशान हो गये। बिरसा को ब्रिटिश शासन के विरुद्ध दंगा भड़काने के आरोप में गिरफ्तार कर लिया। राँची जेल में डाल दिया गया। सजा पूरी होने के बाद सामाजिक जागरण को स्वतन्त्रता-संग्राम का नाम दे दिया गया। बिरसा ने बैठकें शुरू की जिसकी सूचना शासन को लग गई और इनके विरुद्ध वारंट कट गया। इन्हें पकड़ने के लिए इनाम घोषित हुए। इनाम के लालच में किसी ने सोते हुए बिरसा को पकड़वा दिया। इन सभी घटनाओं से सिद्ध होता है कि भारत की पराजय का मुख्य कारण यहाँ के देशद्रोही ही रहे हैं।
(घ) बिरसा मुण्डा ने किस उद्देश्य से अपना आन्दोलन प्रारम्भ किया ?
उत्तर- बिरसा मुण्डा ने देखा कि मुण्डा और जनजातियों की आर्थिक दशा बहुत ही दयनीय हो चुकी है। इसका मुख्य कारण था कि अंग्रेजों ने उन्हें उनके खेतों से बेदखल कर दिया। वे इन खेतों के मालिक थे। वे फसलें उगाते थे। उनकी ग्राम व्यवस्था थी। पंच-पंचायतें थीं। उनका रहन-सहन परम्परागत था। अंग्रेजों ने उन सबको नष्ट करके जींदार, जागीरदार, जंगल के ठेकेदार और दलाल उन पर लाद दिए। वनवासी अपनी ही जमीन पर मालिक से नौकर हो गये। वे भूख और दमन से स्वयं को असहाय समझने लगे। ऐसी स्थिति में बिरसा मुण्डा ने ब्रिटिश शासन के विरुद्ध तीव्र आन्दोलन प्रारम्भ कर दिया। यह आन्दोलन अन्याय और शोषण के विरुद्ध था, मानवता की रक्षा के लिए था। मुण्डा समाज की दबी भावनाएँ उभरकर आ गईं। सामाजिक आन्दोलन ने राजनैतिक रूप धारण कर लिया था। बिरसा मुण्डा इन गतिविधियों का केन्द्र बिन्दु थे। उन्होंने ब्रिटिश शासन को उखाड़ फेंकने का संकल्प ले लिया। उन्होंने कहा कि अंग्रेजों ने हमें बहुत लूटा है, अब हम इन्हें सहन नहीं करेंगे।
(ङ) प्रस्तुत पाठ के आधार पर बिरसा मुण्डा के चरित्र की विशेषताएँ बताइए।
उत्तर- (1) स्वतन्त्रता की भावना- बिरसा अपने बचपन से ही एक होनहार देशभक्त बालक था। उसमें अपने समाज के उत्थान के लिए सब कुछ कर गुजरने की तीव्र इच्छा थी। वह अपने विद्यार्थी जीवन से ही स्वतन्त्र प्रकृति का व्यक्ति था। वह ब्रिटिश शासन के विरुद्ध था। उसने लोगों को स्वतन्त्रता और अपने जीवन मूल्यों को समझने की बात बतायी। जड़ी-बूटियों के द्वारा बीमारियों का इलाज करना सीखा, इससे उनमें स्वदेशी की भावनाओं की तीव्रता का पता चलता है।
(2) संगठनकर्त्ता- उन्होंने अपने समाज के लोगों को एकत्र किया, उनको संगठित करके अपनी भावना बतायी। उन लोगों में अपने सम्मान, देश के सम्मान की रक्षा करने की भावना जाग्रत कर दी।
(3) मातृभूमि की आजादी- देश की आजादी के लिए उन्होंने जीवन भर संघर्ष किया। अंग्रेज सरकार के जुल्मों को सहा। देश की आजादी का सपना पूरा तो नहीं हो सका, परन्तु समाज में आजादी की चेतना जागृत कर दी। स्वतन्त्रता संग्राम में उनका नाम अमर रहेगा।
भाषा-अध्ययन
प्रश्न 1. निम्नलिखित शब्दों के मानक हिन्दी शब्द लिखिए-
हुक्म, जवान, सजा, इनाम, पेश, तबीयत।
उत्तर- (1) आदेश, (2) युवक, (3) दण्ड, (4) पुरस्कार, (5) प्रस्तुत, (6) स्वास्थ्य।
प्रश्न 2. निम्नलिखित शब्दों का समास विग्रह करके समास का नाम लिखिए।
जीवनवृत्त, शैशवकाल, शंखनाद, टीका-टिप्पणी, जड़ी-बूटी, बहला-फुसला, गाँववासी।
उत्तर-
पूर्ण शब्द | समास-विग्रह | समास का नाम |
---|---|---|
जीवन वृत्त | जीवन का वृत्त | तत्पुरुष समास |
शैशवकाल | शैशव का काल | तत्पुरुष समास |
शंखनाद | शंख का नाद | तत्पुरुष समास |
टीका-टिप्पणी | टीका और टिप्पणी | द्वंद्व समास |
जड़ी-बूटी | जड़ी और बूटी | द्वंद्व समास |
बहला-फुसला | बहला और फुसला | द्वंद्व समास |
गांव वासी | गांव के वासी | तत्पुरुष समास |
प्रश्न 3. निम्नलिखित शब्दों का सन्धि-विच्छेद करके सन्धि का नाम बतलाइए-
तत्कालीन, उद्धारक, तन्मय, सत्याग्रह, युवावस्था।
उत्तर-
पूर्ण शब्द | संधि-विच्छेद | संधि का नाम |
---|---|---|
तत्कालीन | तत् + कालीन | व्यंजन संधि |
उद्धारक | उत् +धारक | व्यंजन संधि |
तन्मय | तत् + मय | व्यंजन संधि |
सत्याग्रह | सत्य + आग्रह | स्वर संधि |
युवावस्था | युवा + अवस्था | स्वर संधि |
प्रश्न 4. सही विकल्प चुनकर रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए-
(अ) 'तन्मयता' शब्द में .............. प्रत्यय है।
(यता, ता, मयता)
(आ) 'बेबस' शब्द में .............. उपसर्ग है।
(बेव, बे, स)
(इ) 'दयनीय' शब्द में .............. प्रत्यय है।
(इय, नीय, य)
(ई) 'राजनैतिक' शब्द में .............. प्रत्यय है।
(तिक, इक, क)
उत्तर-
(अ) 'तन्मयता' शब्द में ता प्रत्यय है।
(आ) 'बेबस' शब्द में बे उपसर्ग है।
(इ) 'दयनीय' शब्द में नीय प्रत्यय है।
(ई) 'राजनैतिक' शब्द में इक प्रत्यय है।
प्रश्न 5. निम्नलिखित पर्यायवाची शब्दों में से जो शब्द सही पर्यायवाची नहीं है, उन्हें अलग करके लिखिए।
उत्तर-
शब्द | पर्यायवाची शब्द | गलत शब्द |
---|---|---|
रास्ता | मार्ग, रथ, पगडंडी, पथ। | रथ |
बच्चा | बाल, शिशु, काल, बालक। | काल |
पिता | जनक, पितृ, पितामह, तात। | पितामह |
सूर्य | रवि, शशि, भानु, दिनकर। | शशि |
जेल | बंदीगृह, आवास, कारागार, कारागृह। | आवास |
-: परीक्षोपयोगी गद्यांशों की व्याख्या :-
(1) इस समय वे युवावस्था में प्रवेश कर रहे थे। निष्कासन ने उनके जीवन की दिशा बदल दी। बिरसा मुण्डा पीड़ित लोगों की सेवा में जुट गए हैं। वे बीमार व्यक्तियों का उपचार जड़ी-बूटी की सहायता से करने लगे। बीमार लोगों की भीड़ उनके यहाँ एकत्र होने लगी। उपचार के लिए वे दूसरे गाँवों में भी जाते थे। लोगों का विश्वास था कि बिरसा को कोई सिद्धि प्राप्त है। बिरसा के कारण ओझा लोगों का काम चौपट हो रहा था।
सन्दर्भ- प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी पाठ्य-पुस्तक 'भाषा-भारती' के पाठ 'बिरसा मुण्डा' से अवतरित हैं। प्रसंग-बिरसा मुण्डा की समाज और देश-सेवा का वर्णन किया गया है।
व्याख्या- बिरसा को चाईबासा के लूथरन मिशन स्कूल में पढ़ने के लिए भेजा गया। वहाँ पर वे अंग्रेजों के कष्टदायक कारनामों पर टीका-टिप्पणी करते थे। इसके लिए विद्यालय के प्रबन्धकों ने बिरसा पर दबाव डाला कि वे अंग्रेजों के विषय में कुछ भी न कहें लेकिन उन्होंने वैसा करने से इन्कार कर दिया। उन्हें विद्यालय से निकाल दिया गया। पढ़ाई छूट गई। यह उनकी युवावस्था में प्रवेश का समय था। विद्यालय से निकाल दिये जाने से, उनके जीवन की दिशा में बदलाव आ गया। बिरसा ने दुःखी लोगों की (बीमारियों से पीड़ित लोगों की) सेवा करना शुरू कर दिया। इन रोगियों का इलाज उन्होंने जड़ी-बूटियों की मदद से शुरू कर दिया। उनके द्वारा इस इलाज में जड़ी-बूटियों की सहायता ली जाती थी। अब बीमार लोगों की भीड़ उनके निवास पर लगना शुरू हो गई। लोगों के रोगों के इलाज के लिए, वे दूसरे गाँवों को भी जाया करते थे। अब लोगों में बिरसा मुण्डा के प्रति विश्वास पैदा हो गया था। वे कहने लगे कि बिरसा ने कोई सिद्धि प्राप्त कर ली है। इस प्रकार, झाड़-फूंक करने वाले ओझाओं का काम ठप्प हो गया। उनकी रोजी-रोटी में बाधा पड़ गयी।
(2) बिरसा के प्रति लोगों का आदर भाव उत्तरोत्तर बढ़ता जा रहा था। बिरसा के पास दूर-दूर के गाँवों से लोग आने लगे। उन दिनों जनजातियों की आर्थिक स्थिति बहुत ही दयनीय थी। इसके पूर्व वे अपनी जमीन के मालिक थे। वे फसलें उगाते थे। उनकी अपनी ग्राम-व्यवस्था थी। पंच-पंचायतें थीं और रहन-सहन का अपना परम्परागत ढंग था। पर अंग्रेजों ने उन सबको नष्ट करके जमींदार, जागीरदार, जंगल के ठेकेदार और दलाल उन पर लाद दिए। वनवासी अपनी ही जमीन पर मालिक से नौकर हो गए। विवशतावश, भूख और दमन के कारण वे अपने आपको और असहाय समझने लगे।
शब्दार्थ- उत्तरोत्तर = अधिक से अधिक; आर्थिक स्थिति = धन सम्बन्धी दशा; दयनीय = सोचनीय, दीन; मालिक = स्वामी; व्यवस्था = इन्तजाम, प्रबन्ध; परम्परागत = पहले से चला आने वाला; ढंग = तरीका; नष्ट करके = समाप्त करके; लाद दिए = थोप दिए गए; वनवासी = जंगलों में रहने वाले; विवशतावश = विवश होकर, लाचारी के कारण; दमन के कारण = कुचले जाने से; असहाय = किसी भी प्रकार की सहायता से रहित।
सन्दर्भ- पूर्व की तरह।
प्रसंग- बिरसा मुण्डा के प्रति लोगों का सम्मान बढ़ता जा रहा था। दूसरी ओर उन्हें मालिक से मजदूर बना दिया गयां, इन अंग्रेजों की नीति से इस बात का वर्णन किया जा रहा है।
व्याख्या- बिरसा ने लोगों के रोगों का इलाज जड़ी-बूटियों की सहायता से करना शुरू रखा। इससे लोगों में बिरसा का आदर-सम्मान अधिक से अधिक बढ़ता चला गया। अपने इलाज के लिए दूर-दूर गाँवों से लोग बिरसा के पास आने लगे। ये जनजातियाँ जंगलों में रहती थीं। इनकी आर्थिक दशा बहुत ही सोचनीय थी। वे लोग बहुत ही गरीब थे। इस स्थिति से पहले वे लोग अपनी-अपनी जमीन-जायदाद के स्वयं मालिक थे, वे अपने खेतों में स्वयं खेती करते थे। उनमें फसल उगाते थे। वे अपने ही तरीके से गाँव का इन्तजाम करते थे। वहाँ के पंच फैसला करते थे। इनकी पंचायतें होती थीं। इन जनजातियों के लोग अपने ही ढंग से-तौर-तरीके से रहते थे। उनके रहन-सहन की व्यवस्था पुरानी रीतियों के आधार पर चली आ रही थी, परन्तु अंग्रेजों ने यहाँ आकर उन परम्पराओं, रीति-रिवाजों, पंच-पंचायतों को नष्ट कर दिया। उन लोगों के ऊपर जमींदार बैठा दिए। जंगलों को ठेके पर ठेकेदार को दे दिया गया। बीच में अनेक तरह के दलाल उन लोगों के ऊपर नियुक्त कर दिए। इस प्रकार वनवासी लोग, जो अपनी जमीन के मालिक थे, अब नौकर हो गये। उनकी लाचारी थी। वे भूख से पीड़ित थे। उनके ऊपर दमन चक्र चलाया जा रहा था। इस तरह वे अपने आपको असहाय दीन समझने लगे।
(3) ऐसी स्थिति में बिरसा मुण्डा ने ब्रिटिश शासन के विरुद्ध तीव्र आन्दोलन प्रारम्भ किया। यह आन्दोलन अन्याय और शोषण के विरुद्ध था। यह आन्दोलन मानवता को रक्षा के लिए था। उन दिनों प्रथम स्वतन्त्रता संग्राम के महान् सेनानियों में झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई, तात्या टोपे, नाना साहब, कुँवर सिंह आदि की वीरता की कहानियाँ लोगों के मुँह पर थीं। जनमत अंग्रेज शासकों के विरुद्ध था। मुण्डा समाज में दबी भावनाएँ अब व्यापक सामाजिक आन्दोलन और राजनैतिक रूप में उभरने लगीं। गाँव इन गतिविधियों का केन्द्र था और बिरसा इन गतिविधियों के केन्द्र-बिन्दु थे। विदेशी राज का जुआ अपने कंधों से उतारने के लिए वे कृतसंकल्प थे। वे गाँव-गाँव में जाकर सभाएँ करते थे।
शब्दार्थ- स्थिति = दशा में; विरुद्ध = खिलाफ; तीव्र = तेज; प्रारम्भ = शुरू; शोषण = मजदूरी करने के बाद मजदूरी न देना; मानवता = मनुष्यता; स्वतन्त्रता-संग्राम = आजादी की लड़ाई के लिए; सेनानियों में = लड़ाकाओं में। जनमत = लोगों की राय; भावनाएँ = इच्छाएँ; व्यापक = बड़े क्षेत्र में फैला हुआ; उभरने लगी = प्रकट रूप में दीखने लगी; गतिविधियों का = क्रियाकलापों का; केन्द्र-बिन्दु = मुख्य केन्द्र; विदेशी राज का जुआ = दूसरे देश का नियम कानून; कंधों से उतारने के लिए = का पालन न करने के लिए; कृत संकल्प = पक्की प्रतिज्ञा किए हुए।
सन्दर्भ- पूर्व की तरह।
प्रसंग- बिरसा मुण्डा ने विदेशी शासन के विरुद्ध खड़े होकर आजादी प्राप्त करने का बिगुल बजा दिया।
व्याख्या- जनजातियों की दशा खराब होने लगी। वे पराधीनता के कारण भूख और दमन के कुचक्र में फँस गये। ऐसी दशा देखकर बिरसा मुण्डा अंग्रेजी शासन के खिलाफ हो गये, उन्होंने उन अंग्रेज शासकों के शासन के खिलाफ आन्दोलन बहुत तेज कर दिया। उनका यह आन्दोलन शासकों के द्वारा किये गये अन्याय और शोषण के विरोध में था। उन्होंने इस आन्दोलन को मनुष्यता की रक्षा करने के उद्देश्य से चलाया। उस समय की इस स्वतन्त्रता की लड़ाई के महान् लड़ाकों में शामिल घे-झाँसी की महारानी लक्ष्मीबाई, तात्या टोपे, नाना साहब तथा कुँवर सिंह। लोगों को इन वीर सेनानियों की वीरता के गीत और कहानियाँ कंठाग्र थीं। अधिक संख्या में लोग इन अंग्रेज शासकों के खिलाफ थे। सम्पूर्ण मुण्डा समाज की इच्छाएँ जो दबी हुई थीं, वे विस्तृत रूप में समाज के अन्दर आन्दोलन का रूप लेने लीं। उनका राजनैतिक रूप सामने स्पष्ट दीखने लगा। बिरसा का गाँव इन सभी क्रियाकलापों का केन्द्र बन चुका था। सभी ग्रामीण लोग अंग्रेजों के शासन के नियम कानून को हटा देने के लिए पक्की प्रतिज्ञा किये हुए थे। इस उद्देश्य के लिए बिरसा सभी गाँवों में घूमते थे। लोगों के बीच सभा करके अपने उद्देश्य को बताते थे।
(4) उन्होंने कहा, "मेरे न रहने पर भी, मेरे द्वारा दिखाया गया रास्ता बन्द नहीं होगा।" उन्हें ले जाकर राँची जेल में डाल दिया गया। न्यायालय ने ब्रिटिश शासन के विरुद्ध दंगा भड़काने का आरोप लगाकर बिरसा और उनके कुछ साथियों को दो वर्ष की कठोर सजा सुनाई। सजा पूरी हो जाने पर सरकार ने उन्हें मुक्त कर दिया। साथ ही चेतावनी दी कि वे पूर्णतः शान्ति से जीवनयापन करेंगे। कुछ दिनों के बाद, उन्होंने फिर ब्रिटिश साम्राज्यवाद के विरुद्ध शंखनाद कर दिया जिसमें पूरा समाज उनके साथ था।
शब्दार्थ- आरोप = दोष; मुक्त = छोड़ दिया; जीवनयापन = जीवन व्यतीत करें; साम्राज्यवाद = अपने राज्य स्थापित करने की नीति; शंखनाद = ऊँची आवाज में विरोध किया।
सन्दर्भ- पूर्व की तरह।
प्रसंग- अंग्रेज शासकों ने बिरसा को कठोर सजा देकर लोगों का रोष अपने विरुद्ध उत्पन्न करा लिया।
व्याख्या- बिरसा मुण्डा को जब अंग्रेजों ने गिरफ्तार कर लिया तो उन्होंने कहा कि वे लोगों के बीच रहें या न रहें लेकिन उन्होंने लोगों को आजादी प्राप्त करने का रास्ता बता दिया है। लोग आजादी प्राप्त करने के लिए आगे ही आगे बढ़ते जायें। उनका रास्ता कोई रोक नहीं पायेगा। बिरसा को राँची की जेल में डाल दिया गया। उनके ऊपर दोष लगाया गया कि उन्होंने अंग्रेज सरकार के विरोध में दंगा भड़काया है। इसलिए उन्हें और उनके कुछ साथियों को दो वर्ष की कठोर सजा सुनाई गई। सजा का समय पूरा हो जाने पर सरकार ने उन्हें मुक्त कर दिया और चेतावनी दी कि वे शान्तिपूर्वक अपना जीवन बिताएँ, परन्तु थोड़ा समय बीता होगा कि फिर उन्होंने ब्रिटिश सरकार के खिलाफ आन्दोलन का बिगुल बजा दिया। इस आन्दोलन में पूरा समाज अब उनके साथ था। वे अकेले नहीं थे।
~ लेखकगण
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