कक्षा 8वीं, भाषा भारती (हिंदी) पाठ 5 (श्री मुफ्तानंद जी से मिलिए) ।। All lesson's NCERT Solutions।। MP Board Class 8th Hindi Bhasha Bharti Solution Chapter - 5 ।। All lesson's NCERT Solutions

MP Board Class 8th Hindi Bhasha Bharti Solution Chapter - 5 (Shree Muftanand Ji Se Miliye)



 भाषा भारती (कक्षा 8वीं)

पाठ - 5

श्री मुफ्तानंद जी से मिलिए

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-: अभ्यास :-


 बोध प्रश्न          


प्रश्न 1. निम्नलिखित शब्दों के अर्थ शब्दकोश से खोजकर लिखिए-

उत्तर- 

निसंकोच = बिना संकोच के, बेझिझक; 

जीवनयापन = जीवन बिताना; खुशामद = चापलूसी;

मुफ़्तानन्द = बिना खर्च किए ही प्राप्त वस्तु का आनन्द;

कृतकृत्य = धन्य;

तिकड़म-जुगाड़ = चतुराई;

इहलोक = मृत्युलोक; 

साष्टांग = आठ अंगों (सिर, आँख, हृदय, पैर, हाथ, मन, कर्म और वचन) से प्रणाम करना।


प्रश्न 2. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर संक्षेप में लिखिए- 

(क) लेखक ने इस पाठ का नाम मुख्य पात्र के नाम पर क्यों रखा ?

उत्तर- लेखक ने इस पाठ का नाम 'श्री मुफ़्तानन्द जी' रखा, क्योंकि कुछ लोग अपने जीवन भर मुफ्त में कुछ न कुछ प्राप्त करने की जुगाड़ में लगे रहते हैं। अतः व्यंग्य के माध्यम से लेखक ने समाज में फैली बुराइयों को उजागर किया है।


(ख) 'मुफ्तखोरों के सरताज' किसे कहा गया है ?

उत्तर- 'मुफ्तखोरों के सरताज' मुफ़्तानन्द को कहा गया है, जो किसी भी वस्तु को प्राप्त करने के लिए पैसा खर्च करना नहीं चाहते। वे मुफ्त में प्राप्त वस्तुओं का आनन्द उठाते हैं।


(ग) लेखक से मुफ़्तानन्द ने कौन-सी ग्रंथावली माँगी ?

उत्तर- लेखक से मुफ़्तानन्द ने कालिदास ग्रन्थावली माँगी।


(घ) मुफ़्तानन्द जी की कमीज कहाँ और क्यों फटी ?

उत्तर- मुफ़्तानन्द जी की कमीज मुफ्त में बर्फ प्राप्त करने के लिए लगी हुई कतार (क्यू) में लगने पर फट गयी। मुफ्तखोरों द्वारा की गई खींचतान में उन महोदय की कमीज फट गई।


(ङ) लेखक मुफ़्तानन्द जी को साष्टांग प्रणाम क्यों करता है ?

उत्तर- लेखक मुफ़्तानन्द जी को साष्टांग प्रणाम करता है क्योंकि लेखक ने उन जैसा मुफ्तखोर नहीं पाया, न देखा। वे इस मृत्युलोक को भी मुफ्त में सुधार गये तथा अब परलोक की टिकट भी मुफ्त में प्राप्त करने की जुगाड़ में हैं।


प्रश्न 3. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर विस्तार से लिखिए-

(क) मुफ़्तानन्द महोदय की मुफ्तखोरी की घटनाओं में से आपको सबसे अधिक प्रभावित किस घटना ने किया? लिखिए।

उत्तर- मुफ्तानन्द महोदम मुफ्त में ही पान खाने का शौक, कटी पतंग को लूटना, मुफ्त में ही दैनिक पात्रों को पढ़ना, अपने दस पुत्र और पुत्रियों को मुफ्त में ही शिक्षा प्राप्त करा लेते की जुगाड़, मुफ्त में पुस्तकें प्राप्त करके अपना लाभ कमाना, फ्री पास लेकर रही से रही थियेटर देखना, मुफ्त में बर्फ प्राप्त करना, मुफ्त में औषधि प्राप्त करना तथा मुमृत में ही परलोक सुधार लेने सम्बन्धी सभी घटना हास्य प्रधान है परन्तु मुफ्तानन्द जी द्वारा अपनी उप्न के इस पड़ाव पर भी कटी पतंग को लूटने की घटना बहुत हो प्रभावित करती है। मुफ्तानन्द जी बेतहाशा दौड लगाते हुए कटी पतंग को लूटना चाहते हैं। उन्हें अपने शरीर में चोट लगते और दूसरे व्यक्तियों के द्वारा मजाक उड़ाये जाने की भी कोई चिन्ता नहीं है।


(ख) मुफ़्तानन्द जी पढ़ने के लिए समाचार पत्र कैसे प्राप्त करते थे ?

उत्तर- लेखक महोदय के घर प्रतिदिन प्रकाशित होने वाले दो समाचार पत्र आते हैं। उन अखबारों को सबसे पहले मुफ़्तानन्द जी पड़ते हैं। उनका पढ़ना ही किसी धार्मिक अनुष्ठान में लगाये गये भोग के समान है। उनके पढ़ लेने के बाद ही लेखक महोदय अपने अखबार को 'प्रसाद' रूप में प्राप्त करते हैं। वैसे उन्हें अपने मुहल्ले के उन सभी आदमियों के नाम याद हैं जिनके घर प्रतिदिन अखबार खरीदा जाता है। इस तरह कभी-कभी उन सभी के घरों पर समाचार पत्र पढ़ने के लिए वे चले जाते हैं। उनका यह कहना भी उचित हो लगता है कि प्रत्येक मनुष्य को अपने ज्ञानवर्द्धन के लिए अधिक से अधिक समाचार पत्र पढ़ने चाहिए परन्तु वे मुफ्त में ही समाचार-पत्र पढ़ लेते हैं और समाचार पत्रों के खरीदने पर पैसा खर्च करना उनके लिए पाप ही है।


(ग) मुफ़्तानन्द जी दूसरों से पुस्तकें माँगकर उनका क्या करते थे ?

उत्तर- मुफ़्तानन्द जी दूसरों से पुस्तकें मँगाकर, उन पुस्तकों को वे उस व्यक्ति को देते थे, जिससे मुफ़्तानन्द जी अपना लाभ प्राप्त करते थे। देखिये उन मुफ़्तानन्द जी की चतुराई कि वे दूसरों की पुस्तकों के माध्यम से अपना लाभ कमाते हैं। लेखक महोदय ने उन मुफ्तखोर महोदय को यह भी बताया कि पुस्तकें दे दिये जाने के बाद लौटकर कभी नहीं आती हैं। दो दिन में लौटा कर देने के वायदे पर लेखक ने अपनी पुस्तकें दे दी, लेकिन दो वर्ष बीत जाने पर भी पुस्तकें लौटाई नहीं गईं। इस तरह मुफ्त में माँगकर लाई गयी पुस्तकों से उन्होंने अपनी अलमारी को भर रखा है। अपनी अलमारी पर किसी भी व्यक्ति की निगाह भी नहीं पड़ने देते। वास्तव में, उनके पास सभी पुस्तकें बिना मूल्य के दिए ही प्राप्त कर ली गई हैं।


(घ) लेखक ने 'कबीर का रहस्यवाद' किस सन्दर्भ में कहा है ?

उत्तर- लेखक ने कबीर के रहस्यवाद का सन्दर्भ इस रूप में कहा कि मुफ़्तानन्द जी जब भी बीमार हुए, तब उन्होंने अपने इलाज पर कुछ भी खर्च नहीं किया। उन्होंने 'दवा' तो क्या उस शीशी के पैसे भी कभी भी अपने जेब से नहीं दिये। डॉक्टर, वैद्य और हकीम कहने को तो सबके दोस्त होते हैं, परन्तु अपनी फीस, औषधि की कीमत किसी पर भी नहीं छोड़ते। इस तरह आखिर में उन्हें औषधि भी सरकारी अस्पताल से ही मिल जाती है। यही तो कबीर का रहस्यवाद है अर्थात् रहस्य की बात तो यह है कि मुफ़्तानन्द जी को सभी औषधियाँ मुफ्त में ही प्राप्त हो जाती हैं। डॉक्टर तो दुनिया की नब्ज टटोलते हैं और मुफ़्तानन्द जी डॉक्टरों की अर्थात् डॉक्टरों से निःशुल्क औषधि प्राप्त करने में सफल हो जाते हैं। इस तरह यही कबीर के रहस्यवाद के समान बात है।


(ङ) परलोक के सम्बन्ध में मुफ़्तानन्द जी की क्या धारणा है ?

उत्तर- इहलोक की भाँति ही मुफ़्तानन्द जी परलोक में भी मुफ्त जीवनयापन के सपने सैंजोए हैं। उनका दृढ़ विश्वास है कि जब भगवान ने इहलोक में आनन्दपूर्वक निभा दी तो परलोक में भी भगवान मुफ्त में ही उनकी मुक्ति कर देंगे।


प्रश्न 4. रिक्त स्थान भरिए -

(1) ........... का चन्दन घिस मेरे ...........।

(2) माले ........... दिले ..........।


उत्तर-

(1) मुफ्त का चन्दन घिस मेरे नंदन

(2) माले मुफ्त दिले बेरहम


 भाषा-अध्ययन          

प्रश्न 1. निम्नलिखित शब्दों का शुद्ध उच्चारण कीजिए और उन्हें अपने वाक्यों में प्रयोग कीजिए-

निमन्त्रण, सिद्धान्त, अनुष्ठान, तिलाजंलि, कृतकृत्य, कण्ठस्थ, साष्टांग, कृतार्थ।

उत्तर- विद्यार्थी उपर्युक्त शब्दों को ठीक-ठीक पढ़कर उनका शुद्ध उच्चारण करने का अभ्यास करें और फिर लिखें।


वाक्य-प्रयोग

(1) निमन्त्रण- मेरी पुत्री के जन्मोत्सव के अवसर पर आपका निमन्त्रण है।

(2) सिद्धान्त- प्रसिद्ध वैज्ञानिकों ने अनेक बार प्रयोग करके सिद्धान्तों का निरूपण किया।

(3) अनुष्ठान- आज मेरे परिवार में कुछ विशेष अनुष्ठानों का आयोजन किया जा रहा है।

(4) तिलांजलि- अपने पूर्वजों द्वारा स्थापित रीति-रिवाजों को तिलांजलि देकर परम्पराएँ कायम नहीं रह सकर्ती ।

(5) कृतकृत्य- देव-दर्शन करके हम सभी कृतकृत्य हो गये।

(6) कण्ठस्थ- बालकों को अपनी कक्षा की कविताएँ कण्ठस्थ कर लेनी चाहिए।

(7) साष्टांग- हमारे देश में संन्यासियों को आज भी साष्टांग प्रणाम किया जाता है।

(8) कृतार्थ- गंगाजल के स्पर्श मात्र से प्राणी कृतार्थ हो जाता है।


प्रश्न 2. निम्नलिखित समानोच्चारित भिन्नार्थक शब्दों का अर्थ स्पष्ट करते हुए वाक्यों में प्रयोग कीजिए-

1. अन्न-अन्य,

2. आदि-आदी, 

3. अनल-अनिल, 

4. अकथ अथक, 

5. उपकार-अपकार।


उत्तर- 

1. अन्न = अनाज; अन्य = दूसरा।

प्रयोग- (1) अन्न उत्पादन में भारत उन्नति कर रहा है।

(2) आजादी के समय भारत अन्य देशों से अन्न मँगाता था।


2. आदि = प्रारम्भ के; आदी = आदत पड़ जाना।

प्रयोग- (1) द्रोणाचार्य पाण्डवों के आदि गुरु थे।

(2) वह सिगरेट पीने का आदी है।


3. अनल = आग; अनिल = हवा ।

प्रयोग- (1) अनल सबको भस्म कर देती है।

(2) अनिल के सहारे जीवन बना रहता है।


4. अकथ = न कहने योग्य, अथक = न थके हुए।

प्रयोग- (1) उसकी अकथ कहानी है।

(2) अथक परिश्रम से सफलता मिल सकती है।


5. उपकार = भलाई; अपकार = बुराई ।

प्रयोग- (1) भारतीय मनीषियों ने संसार में अनेक उपकार किए हैं।

(2) अपकारी जन निन्दा का पात्र होता है।


प्रश्न 3. निम्नलिखित मुहावरों/कहावतों को अपने वाक्यों में प्रयोग कीजिए-

यथा नाम तथा गुण; 

माले मुफ्त दिले बेरहम; 

मुफ्त का चन्दन - घिस मेरे नन्दन; 

धरना देना; 

नब्ज टटोलना; 

टोह में रहना।


उत्तर- (1) भीम ने अनेक योद्धाओं को धराशायी करके 'यथा नाम तथा गुण' सिद्ध कर दिया था।

(2) आजकल के नेताओं पर यह कहावत कि 'माले मुफ्त दिले बेरहम' चरितार्थ होती है।

(3) बिना धन खर्च किए खाद्य वस्तु प्राप्त करने वाले लोग 'मुफ़्त का चन्दन घिस मेरे नन्दन' के अनुसार खूब खाते हैं।

(4) किसानों ने अपनी माँगों के समर्थन में तहसील पर धरना दिया।

(5) विधानसभा के चुनावों में मतदाताओं की 'नब्ज टटोलना' नेताओं के लिए आसान नहीं है।

(6) जंगली जानवर दिन छिपते ही अपनी शिकार की 'टोह में रहते' हैं।


प्रश्न 4. निम्नलिखित अनुच्छेद में यथास्थान विराम- चिह्नों का प्रयोग कीजिए-

भगवान ने इस संसार रूपी अजायबघर में भाँति-भाँति के जीव जन्तु छोड़े हैं कुछ काले कुछ गोरे कुछ सुन्दर कुछ असुन्दर भोले और जल्लाद अलग-अलग स्वभाव अलग-अलग चाल ढाल मेरे पड़ौस में एक सज्जन रहते हैं नाम है मुफ्तानन्द जी।


उत्तर- भगवान ने इस संसार रूपी अजायबघर में भाँति-भाँति के जीव-जन्तु छोड़े हैं। कुछ काले, कुछ गोरे, कुछ सुन्दर, कुछ असुन्दर, भोले और जल्लाद। अलग-अलग स्वभाव, अलग-अलग चाल-ढाल। मेरे पड़ोस में एक सज्जन रहते हैं, नाम है मुफ़्तानन्द जी।


प्रश्न 5. 'अजनबी' शब्द का हिन्दी में रूप 'अपरिचित ' है। इसी प्रकार निम्नलिखित शब्दों के हिन्दी रूप लिखिए-

खुशामद, नब्ज, सलामत, दावत, बेरहम, अखबार, रोजाना, नुकसान।


उत्तर- खुशामद = चापलूसी, चाटुकारी; नब्ज = नाड़ी; सलामत = ठीक, स्वस्थ, दावत = भोज; बेरहम = निर्दयी; अखबार = समाचार पत्र; रोजाना = प्रतिदिन; नुकसान = हानि।


प्रश्न 6. (क) इस पाठ से कुछ ऐसे वाक्य छाँटकर लिखिए, जिनमें सर्वनाम का प्रयोग विशेषण की तरह किया गया है।

उत्तर- (1) मुहल्ले में कौन-कौन लोग अखबार मँगाते हैं।

(2) प्रत्येक मनुष्य को अपने ज्ञान-वर्द्धन के लिए समाचार-पत्र पढ़ना चाहिए। 

(3) ईश्वर की कृपा से उनके छह लड़के और चार लड़‌कियाँ हैं।


(ख) ऐसे वाक्य बनाइए जिनमें 'वह', 'यह', 'जो', 'क्या' और 'कोई' शब्द सर्वनाम के रूप में प्रयुक्त हुए हों।

उत्तर- (1) वह पत्र लिखता है।

(2) यह मेरी पुस्तक है।

(3) यह वही है जो मेरे घर आया था।

(4) वह क्या कर रहा है ?

(5) कोई आया है।


प्रश्न 7. विशेषणों के पुनरुक्ति वाले विभिन्न अर्थ (भाव) के दो-दो वाक्य लिखिए।

उत्तर- (1) प्रत्येक टोली में पाँच-पाँच बालक होंगे।

(2) पके-पके आम इकट्ठे करो।

(3) अच्छे-से-अच्छा फल लाओ।

(4) लाल-लाल सेब मीठे होते हैं।



-: परिक्षापयोगी गद्यांशों की व्याख्या :- 


(1) 'मुफ्त का चन्दन घिस मेरे नन्दन, ब्रजभाषा की लोकोक्ति है। श्री मुफ्तानन्द जी इसके ज्वलन्त उदाहरण हैं। शौक सब करेंगे। पान का भी शौक जान-पहचान वालों की जेब से ही होता है। आप पान खा रहे हैं, आप से नमस्कार किया और पान पर हाथ बढ़ाया। यदि आप ट्रेन में सफर कर रहे हैं, तो किसी अजनबी से भी निसंकोच रूप से अपने आवश्यक शौक पूरा कर लेते हैं।


शब्दार्थ- मुफ्त = बिना मूल्य दिए प्राप्त करना; मुफ्तानन्द = मुफ्त का आनन्द लेने वाले; ज्वलन्त = महत्त्वपूर्ण, स्पष्ट; जान-पहचान वाले = परिचित लोग; हाथ बढ़ाया = ले लिया; ट्रेन = रेलगाड़ी; सफर = यात्रा, अजनबी = अपरिचित; निसंकोच = बिना किसी संकोच के, बेझिझक ।


सन्दर्भ- प्रस्तुत पंक्तियाँ "श्री मुफ़्तानन्द जी से मिलिए" नामक पाठ से अवतरित है। इसके लेखक डॉ. बरसाने लाल चतुर्वेदी हैं।


प्रसंग- इन पक्तियों में व्यकार चतुर्वेदी ने ऐसे अतियों पर व्यंग्य किया है, जो बिना मूल्य दिए ही उपभोग की विभिन्न वस्तुओं का आनन्द लेते हैं।


व्याख्या- ब्रजभाषा में ब्राज के लोगों के द्वारा एक कहावत कही जाती है। जिसका अर्थ है धन के खर्च बिना किए ही यदि चन्दन प्राप्त हो रहा हो, तो उसे मेरे पुत्र जोरदारी से घिसता चल। इस प्रसिद्ध उदाहरण के लिए श्री मुफ़्तानन्द जी का नाम लिया जा सकता है। ये महानुभाव सभी प्रकार के शौक पूरे करते हैं परन्तु उनके लिए एक भी पैसा खर्च नहीं करते हैं। वे पान खाने के शौकीन हैं, परन्तु इसकी पूर्ति परिचित लोगों की जेब से ही करते हैं। आपको पान खाते हुए देखकर वे अवश्य ही अपको नमस्कार करेंगे और इसके साथ ही अपने हाथ को बढ़ाकर पान को खाँच लेंगे। यदि किसी अवसर पर मुफ़्तानन्द जी रेलगाड़ी से यात्रा कर रहे हैं, उस रेलगाड़ी में कोई अपरिचित व्यक्ति भले ही सहयात्री हो, तब भी बिना किसी संकोच के (हिचकिचाहट के) आप अपने उस शौक को पूरा कर लेंगे हो जिसे वे आवश्यक समझते हैं।


(2) मेरे घर दो दैनिक पत्र रोजाना आते हैं, मुझे उनकी प्रसादी तभी मिल पाती है, जब श्रीमान मुफ्तानन्द भोग लगा लेते हैं। मोहल्ले में कौन-कौन लोग अखबार मंगाते हैं, उनकी नामावली उन्हें कण्ठस्थ है। समय-समय पर सब पर कृपा करते हैं। उनका कथन है कि प्रत्येक मनुष्य को अपने ज्ञानवर्द्धन के लिए, अधिक-से-अधिक समाचार पत्र पढ़ने चाहिए किन्तु पैसा खर्च करके समाचार-पत्र पढ़ना वे पाप समझते हैं।


शब्दार्थ- दैनिक पत्र = प्रतिदिन छपकर निकलने वाला समाचार-पत्र; रोजाना = प्रतिदिन; प्रसादी = देवता को भोग लगा देने के बाद प्राप्त प्रसाद; नामावली = क्रमबद्ध नामों का विवरण; कण्ठस्थ है = मौखिक रूप से स्मरण है; ज्ञानवर्द्धन = ज्ञान की बढ़ोत्तरी के लिए; पाप समझते हैं = उचित नहीं मानते है।


सन्दर्भ- पूर्व की तरह।


प्रसंग- पूर्व की तरह।


व्याख्या- धन खर्च किए बिना वस्तु प्राप्त करके, उसके आनन्द को लेने वाले व्यक्ति पर व्यंग्य कसते हुए व्यंग्यकार बरसाने लाल चतुर्वेदी बताते हैं कि उनके घर प्रतिदिन निकलने वाले दो समाचार-पत्र रोजाना ही आते हैं परन्तु मैं उन्हें तब तक नहीं पढ़ पाता जब तक श्री मुफ़्तानन्द जी सबसे पहले नहीं पढ़ लेते (भोग लगा लेते)। उनके पढ़ लेने के बाद ही मुझे समाचार-पत्र पढ़ने का अवसर (प्रसादी) मिल पाता है। श्री मुफ़्तानन्द जी को मुहल्ले भर के उन सभी लोगों के नाम मालूम हैं जिनके घर पर अखबार आता है क्योंकि वे सभी के यहाँ से समाचार-पत्र माँग कर पढ़ लेते हैं। उनका यह कथन है कि मनुष्य को अधिक से अधिक अखबार पढ़ने चाहिए, क्योंकि ऐसा करने से मनुष्य के ज्ञान की वृद्धि होती है परन्तु समाचार-पत्र पैसे से खरीद कर पढ़ने को उचित नहीं मानते। वस्तु की खरीद पर पैसा खर्च करना उनके लिए पाप है।


(3) 'इहलोक को मुफ्त में सुधारकर मुफ़्तानन्द जी, अब परलोक में भी मुफ्त जीवनयापन करने की टोह में रहते हैं। उनका दृढ़ विश्वास है कि जब भगवान ने यहीं इस प्रकार आनन्द से निभा दी, तो स्वर्ग का टिकट खरीदने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी। भगवान मुफ्त में उनकी मुक्ति कर दें, यह प्रार्थना करते हुए मुफ़्तानन्द जी को हम साष्टांग दण्डवत् करते हैं।'


शब्दार्थ- इहलोक = मृत्युलोक; मुफ्त = बिना कुछ खर्च किए ही; परलोक = दूसरे लोक; जीवनयापन = जीवन बिताने के लिए; टोह में = तलाश में; दृढ़ = पक्का; विश्वास = मानना; आनन्द से = सुखपूर्वक; निभा दी = निर्वाह कर दिया; मुक्ति = मोक्ष; साष्टांग = पूरे शरीर को जमीन पर लिटा कर; दण्डवत् = प्रणाम, नमस्कार।


सन्दर्भ- पूर्व की तरह।


प्रसंग- मुफ़्तानन्द जी पूरे जीवन भर किसी तरह भी खर्च न करते हुए अपना जीवनयापन करते हैं और अन्त में भी मुफ्त में स्वर्ग जाने की कामना पूरी करते हैं।


व्याख्या- व्यंग्यकार चतुर्वेदी जी व्यंग्यपूर्वक कहते हैं कि मुफ़्तानन्द जी ने इस मृत्युलोक को तो बिना कुछ खर्च किये ही सुधार लिया अर्थात् जीवन व्यतीत कर लिया। वृद्धावस्था में आकर वे अपने अन्तिम पड़ाव परलोक को भी बिना खर्च किये ही (परोपकार आदि के काम न करते हुए ही) सुधार लेना चाहते हैं। वे अभी भी इस बात की तलाश में रहते हैं कि मृत्युपर्यन्त जब किसी भी तरह कोई खर्च नहीं किया है, तो परलोक की यात्रा करने पर भी खर्च न करना पड़े। वे यह पक्के विश्वास के साथ कहते हैं कि ईश्वर ने अब तक आनन्दपूर्वक निर्वाह किया है, तो उन्हें स्वर्ग जाने के लिए भी कोई खर्च नहीं करना पड़ेगा और उन्हें बिना कोई खर्च किए ही मुक्ति प्राप्त हो जायेगी। इस तरह के आचरण वाले मुफ़्तानन्द को सभी साष्टांग प्रणाम करते हैं जो अपने पूरे जीवन भर किसी भी तरह का खर्च किए बिना ही जिन्दगी काट देने के अपने कौशल के लिए प्रसिद्ध हैं।


              ~ डॉ. बरसाने लाल चतुर्वेदी

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