भाषा भारती (कक्षा 8वीं)
पाठ - 8
गणितज्ञ - ज्योतिषी आर्यभट्ट
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-: अभ्यास :-
बोध प्रश्न
प्रश्न 1. निम्नलिखित शब्दों के अर्थ शब्दकोश से खोजकर लिखिए-
उत्तर-
कीर्ति = यश;
संगम = मिलना, समागत, दो या अधिक नदियों के मिलने का स्थान;
प्रलय = सर्वनाश, बर्बादी;
शंकु = शंकु के आकार में;
वेधशाला = तारों और नक्षत्रों के अध्ययन के लिए बनी शोधशाला;
धारणा = मत;
प्रख्यात = प्रसिद्ध;
हेय = घृणित, घृणा करने योग्य;
पद्धति = ढंग;
सूत्रबद्ध = धागे में बॅंधा हुआ, अथवा संक्षेप में;
आसन्न = समीप, पास।
प्रश्न 2. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर संक्षेप में लिखिए-
(क) पटना शहर का पुराना नाम क्या है?
उत्तर- पटना शहर का पुराना नाम पाटिलपुत्र है।
(ख) पटना के पास कौन-सा प्रख्यात विश्वविद्यालय था?
उत्तर- पटना के पास नालन्दा विश्वविद्यालय था जो अपने समय का बहुत ही
प्रसिद्ध विश्वविद्यालय था।
(ग) पटना के पास किन-किन नदियों का संगम हुआ है?
उत्तर- पटना के पास गंगा, सोन और गंडक नदियों का संगम हुआ है।
(घ) वेधशाला किसे कहते है?
उत्तर- वेधशाला में तारामंडल और नक्षत्रों की गति का अध्ययन किया जाता है।
यह एक प्रयोगशाला ही होती है जिसमें ज्योतिषी ग्रहण आदि के लगने और समाप्त होने
के समय की भविष्यवाणी करते हैं।
(ङ) ‘भट’ शब्द का क्या आशय है?
उत्तर- ‘भट’ शब्द का आशय ‘योद्धा’ होती है।
(च) ‘आर्यभटीय’ पुस्तक के कौन-कौन से चार भाग है?
उत्तर- आर्यभट्टीय पुस्तक के निम्नलिखित चार भाग हैं—
(1) दशगीतिका, (2) गणित, (3) कालक्रिया, (4) गोल।
आर्यभटीय पुस्तक संस्कृत भाषा में रचित है और इसकी रचना पद्मात्मक है।
(छ) ‘आर्यभटीय’ ताड़पत्र पोथियों की खोज किस विद्वान ने खोज की थी?
उत्तर- ‘आर्यभटीय’ की ताड़पत्र पोथियों की खोज महाराष्ट्र के विद्वान डॉ.
भाऊ दाजी ने सन् 1864 ई. में की थी। यह मलयालम लिपि में लिखी हुई थी। उन्होंने ही
इनका विवरण प्रकाशित किया था।
प्रश्न 3. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर विस्तार ये लिखिए-
(क) पाटलिपुत्र नगर से दूर आश्रम में ज्योतिषी और विद्यार्थी क्यों एकत्रित
होते थे?
उत्तर- पाटलिपुत्र नगर से दूर आश्रम में ज्योतिषी औ विद्यार्थी एकत्रित
होते थे। यह आश्रम टीले पर था। वहाँ बड़ी चहल-पहल थी। यह आश्रम भी कुछ भिन्न
प्रकार का था। टीले पर बसे इस आश्रम का लम्बा-चौड़ा आँगन था। उस आँगन में ताँबे,
पीतल और लकड़ी से निर्मित अनेक तरह के यन्त्र रखे हुए थे। उनमें से कुछ यन्त्र
गोल आकार के थे, कुछ कटोरे जैसे तथा कुछ वर्तुलाकार थे तथा कुछ शंकु की तरह के
थे। वास्तव में, यह एक वेधशाला थी। इन यन्त्रों के आस-पास कितने ही ज्योतिषी बैठे
हुए थे। वे सभी बहुत प्रसिद्ध थे। साथ ही वहाँ अनेक विद्यार्थी भी बैठे हुए थे।
वे वहाँ इकट्ठे होकर हिसाब लगाकर भविष्य-वाणी किया करते थे कि ग्रहण किस समय
लगेगा, कहाँ दिखाई देगा तथा इस ग्रहण का समय क्या होगा। वे अपनी गणना के अनुसार
की गई भविष्यवाणियों की सत्यता की परख करने के लिए वहाँ एकत्र हुआ करते थे।
(ख) 'पृथ्वी अपनी धुरी पर चक्कर लगाती है', इस कथन को आर्यभट्ट ने किस तरह
लोगों को समझाया?
उत्तर- आर्यभट्ट ने कभी भी आँखें मूंदकर पुरानी गलत धारणाओं को स्वीकार
नहीं किया। वे अपने विचारों को बिना झिझक और भय के प्रस्तुत कर दिया करते थे।
उन्होंने ग्रहणों और आकाश की अन्य अनेक घटनओं के सम्बन्ध में स्वतन्त्र रूप से
अपने विचार रखे। उन्होंने लोगों को खुलकर बताया कि हमारी पृथ्वी अपनी धुरी पर
चक्कर लगाती है। वह स्थिर नहीं है। आकाश का तारामण्डल स्थिर है। आर्यभट्ट ने यह
भी स्पष्ट किया कि पृथ्वी अपनी धुरी पर पश्चिम से पूर्व की ओर घूमती है और इसके
साथ हम भी घूमते रहते हैं। इसलिए आकाश का स्थिर तारामण्डल हमें पूर्व से पश्चिम
की ओर जाता हुआ जान पड़ता है।
(ग) आर्यभट्ट ने सूर्यग्रहण और चन्द्रग्रहण के विषय में क्या विचार व्यक्त किए
थे?
उत्तर- कुछ आचार्य और विद्यार्थी पाटलिपुत्र के आश्रम की वेधशाला में
बैठकर आपस में चर्चा कर रहे थे कि ग्रहण क्यों लगता है। उनमें से कुछ कह रहे थे
कि धर्मग्रन्थों में लिखा हुआ है कि ग्रहण के समय राहु नाम का राक्षस सूर्य और
चन्द्रमा को निगल लेता है। हमें चाहिए कि इन ग्रन्थों की बातों पर हमें विश्वास
करना चाहिए। परन्तु वहाँ उपस्थित विद्यार्थी मण्डल में एक तरुण विद्यार्थी बैठा
हुआ था। वह अपने साथी विद्यार्थियों को समझा रहा था कि पृथ्वी की बड़ी छाया जब
चन्द्रमा पर पड़ती है तो चन्द्रग्रहण लगता है और इसी तरह जब चन्द्रमा, पृथ्वी और
सूर्य के बीच आता है तथा वह सूर्य को ढक लेता है, तब सूर्यग्रहण होता है। राहु
नामक राक्षस सूर्य अथवा चन्द्रमा को निगल जाता है, यह सब कपोल कल्पित धारणा है।
हमें इनमें विश्वास नहीं करना चाहिए।
(घ) ज्ञान-विज्ञान के क्षेत्र में संसार को प्राचीन भारत की क्या देन है?
उत्तर- ज्ञान-विज्ञान के क्षेत्र में संसार को प्राचीन भारत की सबसे बड़ी
देन है— शून्य सहित केवल दस अंक संकेतों से भी संख्याओं को व्यक्त करना। इस
दाशमिक स्थान मान अंक पद्धति की खोज आर्यभट्ट से तीन-चार सौ वर्ष पहले हो चुकी
थी। आर्यभट्ट इस नई अंक पद्धति से परिचित थे। उन्होंने अपने ग्रन्थ के शुरू में
वृन्द (1000000000) अर्थात् अरब तक की दस गुणोत्तर संख्या संज्ञाएँ देकर लिखा है
कि इनमें प्रत्येक स्थान अपने पिछले स्थान से दस गुना है।
आर्यभट्ट ने हमारे देश में गणित-ज्योतिष के अध्ययन की एक नई स्वस्थ परम्परा शुरू
की। इस तरह यह कहा जा सकता है कि प्राचीन भारत ने ज्ञान विज्ञान के क्षेत्र में
संसार को बहुत बड़ी उपलब्धि कराई।
(ङ) आर्यभट्ट को प्राचीन भारतीय विज्ञान का सबसे चमकीला सितारा क्यों कहा जाता
है ?
उत्तर- आर्यभट्ट दक्षिणापथ में गोदावरी तट क्षेत्र में अश्मक जनपद के रहने
वाले थे, बाद में ये अश्मकाचार्य के नाम से प्रसिद्ध हुए। आर्यभट्ट बचपन से ही
तेजबुद्धि थे। वे गणित और ज्योतिष के अध्ययन में गहरी रुचि लेते थे। वे इन दोनों
विषयों-गणित और ज्योतिष के अध्ययन के लिए अश्मक जनपद से पाटलिपुत्र पहुँचे। इन
दोनों स्थानों के मध्य की दूरी हजारों मील थी। आर्यभट्ट आँख मूँदकर पुरानी गलत
बातें नहीं मानते थे। वे सदा ही अपनी विचारधारा को बिना किसी डर के और बिना झिझक
के प्रस्तुत कर देते थे। ग्रहण सम्बन्धी बात ही नहीं, दूसरी भी आकाशीय घटनाओं के
सम्बन्ध में स्वतन्त्रतापूर्वक अपने विचार रखते थे। वे एक साहसी ज्योतिषी
वैज्ञानिक थे। उन्होंने पृथ्वी की गति के बारे में अपने विचार खुलकर सबके सामने
रखे थे। वे सबसे पहले ज्योतिषी थे जिन्होंने स्पष्ट रूप से अपने शब्दों में कहा
कि पृथ्वी स्थिर नहीं है। यह अपनी धुरी पर चक्कर लगाती है। स्थिर तो आकाश का
तारामण्डल है। इसके अतिरिक्त आर्यभट्ट ने हमारे देश में गणित और ज्योतिष के
अध्ययन की एक नई स्वस्थ परम्परा शुरू की। इसलिए आर्यभट्ट को प्राचीन भारतीय
विज्ञान का सबसे चमकीला सितारा कहा जाता है।
प्रश्न 4. वस्तुनिष्ठ प्रश्न-
रिक्त स्थानों की पूर्ति वाक्य के सामने कोष्ठक में दिए शब्दों से छाँटकर
कीजिए-
(क) पृथ्वी अपनी धुरी पर ............. से ............ की ओर घूमती
है।
(पूर्व, उत्तर, दक्षिण, पश्चिम)
(ख) ग्रहणों की वैज्ञानिक व्याख्या करने वाले तरुण पण्डित का नाम
.............. था।
(चरक, आर्यभट्ट, सुश्रुत)
(ग) आर्यभट्ट की पुस्तक का नाम ............... था।
(ज्योतिष शास्त्र, गणितशास्त्र, आर्यभटीय)
उत्तर-
(क) पृथ्वी अपनी धुरी पर पश्चिम से पूर्व की ओर घूमती है।
(ख) ग्रहणों की वैज्ञानिक व्याख्या करने वाले तरुण पण्डित का नाम
आर्यभट्ट था।
(ग) आर्यभट्ट की पुस्तक का नाम आर्यभटीय था।
भाषा-अध्ययन
प्रश्न 1. निम्नलिखित तालिका के' अ' भाग में कुछ शब्द दिये गये हैं। 'ब'
तालिका में उनके विलोम शब्द मनमाने क्रम से दिये गए हैं, उन्हें सही क्रम में
लिखिए-
तालिका ‘अ’ | स्वतंत्र, स्थिर, आकाश, निर्भय, अंधकार, अपराह्न। |
---|---|
तालिका ‘ब’ | भय, परतंत्र, अस्थिर, पाताल, पूर्वाह्न, प्रकाश। |
सही क्रम |
उत्तर- सही क्रम- परतंत्र, अस्थिर, पाताल, भय, प्रकाश, पूर्वाह्न।
प्रश्न 2. निम्नलिखित वाक्यों में से उद्देश्य और विधेय अलग-अलग
कीजिए-
(क) आर्यभट्ट महान् गणितज्ञ और ज्योतिषी थे।
(ख) आर्यभट्ट दक्षिणापथ में गोदावरी तट क्षेत्र के अश्मक जनपद में पैदा हुए
थे।
(ग) उन्होंने अपने विचार खुलकर व्यक्त किए।
(घ) आर्यभट्टीय भारतीय गणित ज्योतिष का पहला ग्रन्थ है।
उत्तर-
उद्देश्य
विधेय
(क) आर्यभट्ट
महान् गणितज्ञ और ज्योतिषी थे।
(ख) आर्यभट्टीय दक्षिणापथ
में गोदावरी तट क्षेत्र के
अश्मक
जनपद में पैदा हुए थे।
(ग) उन्होंने
अपने विचार खुलकर व्यक्त किए।
(घ) आर्यभट्टीय भारतीय
गणित ज्योतिष का पहला ग्रन्थ है।
प्रश्न 3. 'विशेष' शब्द में 'वि' उपसर्ग जुड़ा हुआ है। 'प्रख्यात' शब्द में
'प्र' उपसर्ग जुड़ा हुआ है। इसी प्रकार 'वि', 'प्र', 'अधि' और 'अति' उपसर्ग
जोड़कर नए शब्द बनाइए-
उत्तर-
(1) वि = विज्ञान, विशिष्ट, विभूति, विशेष।
(2) प्र = प्रस्तुत, प्रमुख, प्रधान, प्रख्यात।
(3) अधि = अधिसंख्य, अधिपत्र, अधिक्रम।
(4) अति = अतिदाह, अतिदीन, अतिदोष।
प्रश्न 4. निम्नलिखित प्रत्यय जोड़कर प्रत्येक के दो-दो शब्द बनाइए-
ता, आई, आवट, वाला, त्व।
उत्तर-
(1) ता- सुन्दरता, कुरूपता, वीरता।
(2) आई- पढ़ाई, लिखाई, पुताई, मढ़ाई, मिठाई।
(3) आवट- लिखावट, दिखावट, रंगावट।
(4) वाला- दूधवाला, धनवाला, फलवाला, मिठाईवाला।
(5) त्व- घनत्व, विद्वत्व, शीतत्व, ग्रीष्मत्व।
प्रश्न 5. इस पाठ के समानार्थी, विरोधार्थी और पुनरुक्त शब्द अलग-अलग तालिका
में लिखिए।
उत्तर-
समानार्थी शब्द | विरोधार्थी शब्द | पुनरूक्त शब्द |
---|---|---|
बाग-बगीचे | लंबे-चौड़े | दूर-दूर |
दान-पुण्य | आचार्य-विद्यार्थी | तरह-तरह |
आकाश-पाताल | कहाॅं-कहाॅं |
-: परिक्षापयोगी गद्यांशों की व्याख्या :-
(1) पाटलिपुत्र नगर नंद, मौर्य और गुप्त सम्राटों की राजधानी रहा है। दूर-दूर
तक इस नगर की कीर्ति फैली हुई थी। राजधानी होने से देशभर के प्रतिष्ठित पण्डित
यहाँ एकत्र होते थे। प्रख्यात नालंदा विश्वविद्यालय भी पटना से ज्यादा दूर नहीं
था। देश के ही नहीं, दूसरे देशों के विद्यार्थी भी विशेष अध्ययन के लिए नालंदा
और पाटलिपुत्र आते थे। उस समय पाटलिपुत्र नगर ज्योतिष के अध्ययन के लिए मशहूर
था।
शब्दार्थ- सम्राटों = बड़े राजाओं; कीर्ति = यश;
प्रतिदिन = प्रतिष्ठा प्राप्त; एकत्र = इकट्ठे;
प्रख्यात = प्रसिद्ध; मशहूर = प्रसिद्ध।
सन्दर्भ-
प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी पाठ्य-पुस्तक 'भाषा-भारती 'के पाठ 'गणितज्ञ-ज्योतिषी
आर्यभट्ट' से अवतरित हैं। इसके लेखक 'गुणाकर मुले' हैं।
प्रसंग-
इन पंक्तियों में बताया है कि पाटलिपुत्र नगर शिक्षा और ज्योतिष के अध्ययन का
केन्द्र था। इसे नंद वंश, मौर्य वंश और गुप्त वंश के राजाओं ने अपनी राजधानी
बनाया था।
व्याख्या-
पाटलिपुत्र प्राचीन भारत का प्रसिद्ध नगर था। इस नगर को नंद वंश, मौर्य वंश और
गुप्त वंश के प्रसिद्ध शासकों ने अपने राज्य की राजधानी बनाया। उस जमाने का
पाटलिपुत्र आज का पटना शहर है। यह नगर दूर-दूर तक प्रसिद्ध था अपनी कीर्ति के
लिए। यह नगर क्योंकि राजधानी था, इसलिए यहाँ पर देशभर के प्रसिद्ध और प्रतिष्ठा
प्राप्त विद्वान लोग इकट्ठे होते थे। उस युग का प्रसिद्धि प्राप्त नालन्दा
विश्वविद्यालय पाटलिपुत्र (पटना) से अधिक दूर नहीं था। इस विश्वविद्यालय में अपने
देश के ही नहीं दूसरे देशों के भी विद्यार्थी अपनी विशेष पढ़ाई-लिखाई के लिए
नालन्दा और पाटलिपुत्र आया करते थे। उस समय पाटलिपुत्र ज्योतिष विज्ञान के अध्ययन
के लिए बहुत ही प्रसिद्ध था।
(2) आर्यभट्ट आँख मूँदकर पुरानी गलत बातें मानने को तैयार नहीं थे और अपने
विचार बेहिचक प्रस्तुत कर देते थे। ग्रहणों के बारे में ही नहीं, आकाश की दूसरी
अनेक घटनाओं के बारे में उनके अपने स्वतन्त्र विचार थे। उस जमाने के प्रायः सभी
लोग, ज्योतिषी भी, यही समझते थे कि हमारी पृथ्वी आकाश में स्थिर है। किसी
ज्योतिषी के मन में इस सवाल को लेकर कोई नई बात उठी भी होगी तो भी धर्मग्रन्थों
के वचनों के खिलाफ आवाज उठाने का साहस उनमें नहीं था।
शब्दार्थ- आँख मूंदकर =
बिना विचार किये हुए ही; बेहिचक = बिना किसी झिझक या भय के;
प्रस्तुत कर देते थे = सामने रख देते थे; घटनाओं = गतिविधियों;
स्वतन्त्र = बिना दबाव के; जमाने के = युग के, समय के;
स्थिर है = ठहरी हुई; सवाल = प्रश्न;
धर्मग्रन्थों = धार्मिक पुस्तकों; खिलाफ = विरुद्ध;
साहस = हिम्मत।
सन्दर्भ-
पूर्व की तरह।
प्रसंग- आर्यभट्ट महान् विज्ञान वेत्ता थे। वे सदैव बिना किसी दबाव के अपनी सीधी सच्ची
बात को स्वतन्त्र रूप से सबके सामने रख देते थे।
व्याख्या-
आर्यभट्ट बड़े विज्ञानी और ज्योतिष के ज्ञाता थे। वे पुरानी गलत बातों को मानने
के लिए कभी भी तैयार नहीं होते थे। किसी भी समस्या के समाधान सम्बन्धी अपने
विचारों को बिना झिझक और संकोच के सबके सामने रखने से भी नहीं डरते थे। ग्रहणों
और आकाश की दूसरी बहुत-सी घटनाओं के बारे में उनके विचार बहुत स्वतन्त्र थे। उस
युग के जितने भी विचारक और विद्वान ज्योतिषी थे, वे सभी इस विचारधारा के मानने
वाले थे कि हमारी यह पृथ्वी आकाश के बीचोंबीच ठहरी हुई है, परन्तु यदि उस समय के
विद्वानों और ज्योतिषियों के मन में इसी प्रश्न पर कि पृथ्वी स्थिर है अथवा
चलायमान है, कोई विचार उठा हो, तो भी उन्होंने अपनी विचारधारा को रखने के लिए
हिम्मत नहीं जुटाई होगी। इसका एक कारण भी रहा होगा कि धर्मग्रन्थों के अन्दर जो
भी लिखा गया था, उसके विरुद्ध किसी भी विद्वान द्वारा आवाज उठाने की हिम्मत नहीं
थी।
(3) मगर आर्यभट्ट में ऐसा साहस था। उन्होंने पृथ्वी की गति के बारे में अपने
विचार खुलकर जाहिर किए। आर्यभट्ट हमारे देश के पहले ज्योतिषी थे जिन्होंने साफ
शब्दों में कहा कि पृथ्वी स्थिर नहीं है। यह अपनी धुरी पर चक्कर लगाती है।
स्थिर तो आकाश का तारामण्डल है।
शब्दार्थ- साहस =
हिम्मत; गति = चाल; खुलकर = स्पष्ट रूप से;
जाहिर किए = प्रकट किए; साफ शब्दों में = स्पष्ट रूप से;
स्थिर = ठहरी हुई; धुरी = कीली; चक्कर लगाती है = घूमती है।
सन्दर्भ-
पूर्व की तरह।
प्रसंग- आर्यभट्ट ने स्पष्ट रूप से बताया कि पृथ्वी अपनी कीली पर घूमती
है।
व्याख्या- आर्यभट्ट में गजब का आत्मविश्वास और हिम्मत थी। उन्होंने स्पष्ट
रूप से अपने विचारों को लोगों के सामने रखा कि पृथ्वी गतिमान है, यह अपनी धुरी पर
(कीली पर) लगातार घूमती रहती है। यह ठहरी हुई अथवा स्थिर नहीं है। इस तरह का कथन
आर्यभट्ट का था। ऐसा कहने वाले आर्यभट्ट पहले भारतीय थे। वे पहले भारतीय ज्योतिषी
थे जिन्होंने स्पष्ट रूप से कहा कि यह आकाश जिसमें तारामण्डल दिखता है, स्थिर है,
एक स्थान पर ठहरा हुआ है।
~ गुणाकार मुले
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